ध्रुपद मेला: सुर-सरिता के प्रवाह में लगी डुबकी, देशी कलाकारों ने मन मोहा...
तुलसी घाट पर आयोजित 47वें ध्रुपद मेले की प्रथम निशा में देशी श्रोताओं के साथ कुछ विदेशी श्रोताओं ने भी संगीत का आनंद लिया। हालांकि इस वर्ष संगीत सरिता का प्रवाह सूर्योदय तक नहीं चल सका। लेकिन सुर सरिता की धाराओं की शीतलता की अनुभूति मध्यरात्रि के बाद तक की गई।
वाराणसी/भदैनी मिरर। काशी में होने वाले ध्रुपद मेले की परंपरा को कोरोना भी न रोक सका। सोमवार को तुलसी घाट पर मेले का आगाज हुआ। गंगा किनारे सुर सरिता के प्रवाह में कलाकारों ने पारम्परिक अंदाज में डुबकी लगाई।
तुलसी घाट पर आयोजित 47वें ध्रुपद मेले की प्रथम निशा मे देशी श्रोताओं के साथ कुछ विदेशी श्रोताओं ने भी संगीत का आनंद लिया। हालांकि इस वर्ष संगीत सरिता का प्रवाह सूर्योदय तक नहीं चल सका। लेकिन सुर सरिता की धाराओं की शीतलता की अनुभूति मध्यरात्रि के बाद तक की गई। प्रथम निशा में चार कलाकार मंचासीन हुए।
इस निशा की प्रथम प्रस्तुति पं. देवव्रत मिश्र का सुरबहार वादन रही। आलापचारी से सुरबहार वादन का आरंभ करने के उपरांत उन्होंने राग यमन में चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना का प्रभावी वादन किया। उनके साथ पखावज पर अंकित पारिख ने संगत की। इसके बाद वरिष्ठ कलाकार पं. ऋत्विक सान्याल का गायन हुआ। डॉ ऋत्विक सान्याल ने राग वर्धिनी में आलाप के साथ चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना ‘हर हर शंभू महादेव’ सुनाई। उसके बाद सूलताल में स्वरचित बंदिश ‘गुरुवर मोहियो दीन नित हृदि झंकार’ का भावपूर्ण गायन किया। अंत में तीव्र ताल में स्वयं कृत रचना ‘मदन मोहन मुख मणि मुरली मंद मधुर मुस्काई’ से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। उनके साथ पखावज पर अदित्यदीप ने कुशल संगत की।
इसके बाद डा. हरि पौडयाल के बांसुरी वादन से हुई। सम्मोहनकारी आलाप और सधी हुई तानों ने श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया। राग जोगेश्वरी में आलाप के दौरान स्वरों का आरोह-अवरोह मन मस्तिष्क में विविध चित्रावलियां उकेर रहा था। इसी राग में निबद्ध बंदिश शास्त्रीय विधानों में बंधकर भी उन्मुक्त प्रतीत हुई। उनके साथ पखावज पर आदित्य दीप एवं तानपुरे पर आनंद भारद्वाज ने संगत की। प्रथम निशा को काशी के युवा कलाकार अंकित पारिख के पखावज वादन से विराम दिया गया। अतिथियों का स्वागत पं गोपाल पांडेय ने किया। संचालन संयुक्त रूप से डॉ. प्रीतेश आचार्य एवं सौरभ चक्रवर्ती ने किया।