आदिशक्ति माता कुष्मांडा के दरबार में लगी भक्तों की कतार, धूप भी नहीं डिगा पा रही श्रद्धालुओं की आस्था..

चैत्र नवरात्र की चतुर्थी तिथि को आदिशक्ति के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा के दर्शन-पूजन का विधान है। देवी कूष्‍मांडा का स्‍वरूप मंद-मंद मुस्‍कुराहट वाला है।

आदिशक्ति माता कुष्मांडा के दरबार में लगी भक्तों की कतार, धूप भी नहीं डिगा पा रही श्रद्धालुओं की आस्था..

वाराणसी/भदैनी मिरर। चैत्र नवरात्र की चतुर्थी तिथि को आदिशक्ति के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा के दर्शन-पूजन का विधान है। देवी कूष्‍मांडा का स्‍वरूप मंद-मंद मुस्‍कुराहट वाला है। कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तो देवी भगवती के इसी स्‍वरूप ने मंद-मंद मुस्‍कुराते हुए सृष्टि की रचना की थी। इसीलिए ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा और आदिशक्ति हैं। देवी कुष्‍मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में माना गया है। वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल देवी के इसी स्‍वरूप में है। मां के शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।  मां के सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्‍प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है। वहीं आठवें हाथ में जपमाला है, जिसे सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली माना गया है। मां का वाहन सिंह है।


काशी में मां का मंदिर दुर्गाकुंड क्षेत्र में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि मां कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। मां कूष्मांडा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं। इसी मान्यता के अनुसार शनिवार की सुबह से ही मां के मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई। एक तरफ कड़ी धूप और दूसरी तरफ भारी कतार में लगे भक्तों  ने मां का पूजन-अर्चन कर सुख समृद्धि की कामना की। वहीं सुरक्षा की दृष्टि से क्षेत्र में भारी फोर्स भी तैनात रही।