जब अपने छोड़ते है साथ तो सोनम थामती है हाथ, अस्पताल से लेकर श्मशान घाट तक काशी की बेटी कर रही मदद...

जब अपने छोड़ते है साथ तो सोनम थामती है हाथ, अस्पताल से लेकर श्मशान घाट तक काशी की बेटी कर रही मदद...

आनंद कुमार

वाराणसी,भदैनी मिरर। कोरोना काल में हमने इंसानियत को खत्म होते देखा है, अपनों को पराए होते देखा है, कोरोना शवों का अंतिम संस्कार करने से उनके ही परिजनों को पीछे होते देखा है, लेकिन इन सब के बीच काशी की बेटी सोनम कुमार चंदवंशी अस्पताल से लेकर श्मशान घाट तक लोगों की नि:स्वार्थ भाव से मदद कर रहीं हैं। ऐसे समय में जहां अपने ही अपनों को छोड़ जा रहे हैं और लोगों में इंसानियत खत्म होने लगी है, उस कठिन दौर में 20 वर्षीय सोनम कोरोना का खौफ छोड़कर ग्राउंड पर उतरकर इंसानियत की सेवा करने में जुटीं हैं। वाराणसी के काशी विद्यापीठ से ग्रेजुएशन कर रहीं सोनम लोगों को अस्पताल में बेड से लेकर ऑक्सीजन दिलाने में मदद करती हैं, यह सब वह अपने पॉकेट मनी से करती हैं।    


सोनम बताती हैं कि उनसे दूसरों का दर्द देखा नहीं जाता है और वह असहाय लोगों की मदद के लिए एक फोन कॉल पर ही दौड़ जाती हैं। सोनम कोरोना काल से पहले बेजुबान जानवरों की सेवा करती थीं, जिसे वह अब भी करती हैं। इसके अलावा वह अब कोरोना काल में असहाय मरीजों की मदद कर रही हैं। सोनम का ज्यादातर समय अस्पतालों में ही बितता हैं।


कोरोना संक्रमण का डर नहीं लगता है? इसके जवाब में सोनम कहती हैं कि डर तो लगता है लेकिन इस कठिन समय में हमारे जैसे लोग आगे नहीं आएंगे तो कौन आएगा। इंसानियत का जिंदा रखने के लिए हम दिन-रात लोगों की मदद करने में जुटे हैं। सोनम का मानना है कि महामारी में जब इंसान ही इंसान की मदद नहीं करेगा तो कौन करेगा।


हाल ही में सोनम की तबीयत बिगड़ गई थीं। डॉक्टर ने उन्हें आराम करने को कहा था, बावजूद इसके वह लोगों की मदद करने में जुटी हैं। सोनम बताती हैं कि मुझसे असहाय लोगों का दर्द नहीं देखा जाता है। अगर मैं एक दिन भी लोगों का मदद नहीं करूं तो मुझसे घर में रहा नहीं जाता है।


4 साल पहले जब सोनम बेजुबान पशुओं की सेवा करने के लिए घर से बाहर निकलती थीं तो उनके परिवार के सदस्य विरोध करते थे। वो बताती हैं कि शुरुआत में माता-पिता काफी विरोध करते थे, कई बार इसके लिए पिटाई भी हो जाती थी। इसके बावजूद भी वह हिम्मत नहीं हारी और धीरे-धीरे उनके कामों को अखबारों में जगह मिलने लगी तो माता-पिता ने भी उनके कामों को सपोर्ट करना शुरू कर दिया।


बेजुबान जानवरों के इलाज और उनके खाने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती थी। इनके लिए पैसों का इंतजाम सोनम कोचिंग के फीस से करती थी। वह बताती हैं कि कोचिंग के लिए जो पैसे उन्हें घर से मिलते थे वह उसमें से ही बेजुबान जानवरों की सेवा में लगाती थीं। सोनम प्रतिदिन 200 से अधिक स्ट्रीट डॉग को खाना खिलाती है और वह 8 स्ट्रीट डॉग अपने घर पर देखभाल करती हैं। पिछले साल से लागू राष्ट्रीय लॉकडाउन के बाद से ही सोनम जमीन पर लोगों की सेवा कर रही हैं। वह बताती हैं कि राष्ट्रीय लॉकडाउन के बाद से ही एक दिन भी घर पर नहीं रही हूं। अगर चाहती हूं भी तो लोगों के कॉल आ आते हैं और मैं उनका मदद करने से पीछे नहीं हटती हूं। वह व्यक्तिगत रूप से लोगों की सेवा में जुटीं हैं और वह अपने पैसों से सेवा कार्य कर रही हैं। सोनम का कहना है कि अगर लोग हमसे जुड़ेंगे तो भविष्य में एक टीम बनाकर सेवा कार्य करेंगे।