आशीषदेव तुम पर गरीब और जरूरतमंदों का 'आशीष' था, फिर इतनी जल्दी जाने की क्या जरुरत आ गई..! 

Ashishdev was the 'blessing' of the poor and needy on you, then what was the need to leave so soon..! पत्रकार आशीषदेव उपाध्याय तुम्हारे जाने का दुख सभी को है. आज कलम ठिठक सी गई है. आपका हंसता हुआ चेहरा, लोगों की मदद करने का स्वभाव सभी को याद आ रहा है. आपने हमको जब भी फोन किया हमेशा एक ही बात बोली आप की हेडिंग चुराना चाहता हूं मगर वैसा लिख नही पाता. हमेशा कहते थे आप कोई जरुरत हो तुरंत बताइयेगा, आपका भाई हमेशा खड़ा है. आपने हम सबको अपना नहीं समझा शायद इसलिए बिना बताए अनंत यात्रा पर निकल गए, काश! हम लोगों को भी आजमा लिया होता, कुछ तकलीफ जरुर कम हो जाती भाई..!

आशीषदेव तुम पर गरीब और जरूरतमंदों का 'आशीष' था, फिर इतनी जल्दी जाने की क्या जरुरत आ गई..! 
पत्रकार आशीषदेव उपाध्याय की फ़ाइल फोटो।

अवनिन्द्र कुमार सिंह,भदैनी मिरर। हर मुद्दों पर कलम नहीं चल पाती, एक बार फिर कलम ठिठक गई..! विश्वास नही हो रहा, जिंदादिल इंसान मुर्दा बनने की भी सोच सकता है! हर वक्त हंसते मुस्कुराते रहने वाला अपना भाई आशीषदेव उपाध्याय (42) वर्ष ने रोहनियां के अखरी स्थित एक ढ़ाबे के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर लिया, यह खबर जैसे पत्रकारिता जगत के लोगो के बीच गई तो सभी अवाक है। आशीष इतनी जल्दी क्या थी, फोन पर घंटो बातें की तुमने काश! अपना दर्द साझा कर मन हल्का कर लेते। हम सबके लिए नहीं बल्कि अपनी पत्नी और 2 बच्चों की खातिर। भला क्या दोष था 1 पुत्र और 1 पुत्री का जो तुमने उनके सिर से बाप का साया छिन लिए।

तुम पर उन गरीब और जरूरतमंदों का आशीर्वाद (आशीष) था, लॉकडाउन में आपने गरीबों के लिए अपने घर को ही छोटा होटल बना रखा था। इतना ही नहीं आप अपने पैतृक गांव (बक्सर-बिहार) के उन तमाम गरीब और जरूरतमंद मरीजों के लिए भगवान स्वरुप थे, जिन्हें न केवल अपने घर में आश्रय देते थे बल्कि उनको चिकित्सकों को दिखाने से लेकर ठीक होने तक कुशल-क्षेम पूछते रहते थे। दोस्त! तुमने बहुत जल्दी कर दी, ऐसे कोई नहीं जाता भाई। आज सबकी आंखें डबडबा गई है। 

तुम्हारे फेसबुक पोस्ट भी शायद समझ न पाया। पोस्ट से आपके दर्द का आभास हो न पाया। क्यों गए इतना जल्दी, क्या तकलीफ थी आपको? घर से महज कुछ दूरी पर ढ़ाबे में कमरा लेकर रुकने की क्या जरूरत थी? शायद यदि आपके यह तीन पोस्ट किसी को समझ आ गए होते और आपने अपने दर्द को किसी से भी कह दिया होता तो हम सब आप जैसे हँसमुख और मददगार दोस्त कभी नहीं खोते...!

पहला पोस्ट-

ये जिंदगी दर्द भी है, ये जिंदगी है दवा भी
दिल तोड़ना ही न जाने, जाने ये दिल जोड़ना भी
इस जिंदगी का शुक्रिया????????

दूसरा पोस्ट-

दिल ने हम से जो कहा, हम ने वैसा ही किया!
फिर कभी फुरसत से सोचेंगे, बुरा था या भला!
जिंदगी ख्वाब है? ख्वाब में झूठ है क्या? और भला सच मे क्या?

तीसरा पोस्ट-

जमाना वफादार नहीं तो फिर क्या हुआ,
धोखेबाज भी तो हमेशा अपने ही होते है...