गौरा गौने आई: बाराती बन काशीवासियों ने बाबा के अंग लगाया रंग, होली खेलने की मांगी अनुमति...
एकादशी पर सुबह से शाम तक हर कोई बाबा के अंग पर रंग लगाने के लिए आतुर दिखा. जैसे-जैसे माता गौरा के गौने की शुभ घड़ी नजदीक आ रही थी, वैसे-वैसे भक्तों में आस्था का सैलाब उमड़ रहा था.
वाराणसी,भदैनी मिरर। एकादशी पर सुबह से शाम तक हर कोई बाबा के अंग पर रंग लगाने के लिए आतुर दिखा. जैसे-जैसे माता गौरा के गौने की शुभ घड़ी नजदीक आ रही थी, वैसे-वैसे भक्तों में आस्था का सैलाब उमड़ रहा था. एक तरफ भजनों की श्रृंखला भक्तों के कानों में मिठास घोल रही थी वहीं दूसरी ओर हर कोई बाबा के अंग रंग लगाने और पालकी से अबीर को प्रसाद स्वरुप लेने को आतुर रहा.
हां गौर करने वाली बात यह रही की सकरी गलियों में प्रत्येक वर्ष बढ़ते जा रहे डमरू दलों की संख्या पर नियंत्रण बेहद जरूरी है. दोपहर बाद से ही वह गलियों में ऐसे फैल जाते है, जिससे आम श्रद्धालुओं को आने जाने में न केवल दिक्कत का सामना करना पड़ता है, बल्कि वह लड़ने को भी तैयार होते है.
उधर रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के गवना की रस्म निभाई गई. इसी के साथ ही आज से काशी में होली का जश्न भी शुरू हो गया. बाबा के गवाना बारात में जमकर बाबा संग भक्तों ने होली खेली. शिवभक्तों पर होली का खुमार छा गया और फिजा में खूब अबीर गुलाल उड़े. साथ ही साथ टेढ़ी नीम से काशी विश्वनाथ मंदिर तक का इलाका हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान रहा. इस अवसर पर बाबा की पालकी उठाए भक्त काशी की गलियों से होली के रंग से सराबोर दिखें. पालकी यात्रा महंत आवास से काशी विश्वनाथ मंदिर तक निकाली गई.
इससे पूर्व महंत डा. कुलपति तिवारी के टेढ़ी नीम स्थित आवास पर सुबह मंगल बेला में बाबा विश्वनाथ और माता गौरा की रजत प्रतिमा का षोडशोपचार पूजन किया गया. बाबा को भस्म, भभूत की जगह खादी वस्त्र और राजशाही टोपी से सजाया गया. माँ पार्वती को जरी किनारी दार खाटी बनारसी साड़ी पहनाकर सोलह श्रृंगार किया गया गया। इसके बाद आरती के बाद बाबा के दर्शन का क्रम शुरू हुआ.इसके बाद सपरिवार रजत पालकी में सवार बाबा को आरती कर गौरा संग विदा किया गया. काशीवासी बाराती बने और उल्लास हवा में कुछ इस तरह घुले की कई कुंतल गुलाल से वातावरण लाल हो गया. श्रद्धा-भक्ति के इस दिव्य लोक की झांकी दर्शन को आस्था का समुन्द्र इस रंग में रंगता हुआ इस छोर से उस छोर तक बहता चला गया.
वहीं रजत पालकी को कंधे से लगाने व चरण रज पाने की होड़ में भक्त और भगवान के बीच के सारे बंधन तोड़ दिए. गर्भ गृह में शिव परिवार को प्रवेश कराने के लिए पालकी रखने तक में मशक्कत करनी पड़ी. माँ दुल्हन पार्वती के साथ गृह प्रवेश से पहले भक्तो की टोली “नेग” लेने पर उतारू हो गई. नेग भी रूपये ,पैसे, सोने, चांदी नही बाबा की कृपा का, आशीष का, विजय का. काशी विश्वनाथ के परिवार की रजत प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित किया गया.