Editorial: नासूर बने नक्सलियों का उपचार जरुरी

नक्सली हमलों से निपटने के लिए केंद्र राज्य सरकारों को आर्थिक मदद में इजाफा करती जा रही बाबजूद इसके हमलें रुकने का नाम नहीं ले रहे है। हमारे देश के जांबाज सुरक्षाकर्मियों की शहादत हो रही, आम जनता इन हमलों में जान गवां रही। नक्सलियों की हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि वह हमारे बहादुर सुरक्षाकर्मी को घायल कर बंधक बना ले रहे है।

Editorial: नासूर बने नक्सलियों का उपचार जरुरी

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में मुठभेड़ के दौरान नक्सलियों द्वारा अगवा किए गए सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो राजेश्वर सिंह को भले ही रिहा कर दिया गया हो लेकिन पूरा घटनाक्रम सोचने पर मजबूर करता है। रिहाई पर जश्न मनाने के साथ ही नीति-नियंताओं को घर मे बैठे नक्सल रुपी नागों के फन कुचलने में अब देर नहीं की जानी चाहिए। यह कोई पहली घटना नहीं जब नक्सलियों ने इतने बड़े पैमाने पर हमारे सुरक्षाबलों की शहादत ली हो। समय-समय पर यह हमारे सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाते है और हम कुछ दिनों के आक्रोश के बाद पुनः शांत बैठ जाते है। एक लंबा समय बीत गया जब हम इन नक्सलियों को मुख्यधारा में लौट आने के प्रेम आमंत्रण देते रहे है, उल्टा यह हमारे दिए हुए अवसर को देश और सरकार की मजबूरी समझ बैठे है। परिणामस्वरूप सरकारी आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2011 से लेकर 2020 तक 10 सालों में 3,722 नक्सली घटनाएं हुई इनमें 736 आम लोगों की जान गई है, जबकि 489 जवान शहीद हुए हालांकि, सुरक्षाबलों ने इन 10 सालों में 656 नक्सलियों को भी मार गिराया है। यह ठीक है कि सरकार को जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाने देनी चाहिए मगर नक्सलियों के साथ जुड़े जनमानस के बारे में भी मजबूत उपाय करने होंगे। 


उल्लेखनीय है कि जवान को रिहा कराने नक्सलियों के पास गई वार्ता टीमों ने जो बताया उसे नजरअंदाज बिल्कुल नहीं किया जा सकता। नक्सलियों ने रिहाई के लिए जनअदालत बुलाई जिसमें सैकड़ो की संख्या में ग्रामीण थे जिनके सामने रिहाई की। यह स्पष्ट है कि नक्सलियों ने भारी तादाद में जनता को बहकावें में लिया है, उनके भीतर भी सरकार विरोधी सोच को पैदा करने में यह नक्सली सफल हुए है। केंद्र सरकार खुद नक्सलियों से निपटने के लिए आर्थिक मदद में राज्य सरकार की मदद कर रही है। नक्सलियों से निपटने के लिए वर्ष 2017-18 में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ को 92 करोड़ रुपए दिए थे, जो 2020-21 में बढ़ाकर 140 करोड़ रुपए हो गए। बाबजूद इसके न तो हमलें कम हो रहे और न ही जनहानि। ऐसे में केंद्र के साथ ही नक्सल प्रभावित राज्य की सरकारों का दायित्व बढ़ जाता है कि वह अपने राज्य की जनता को अपने भरोसे में ले और उन्हें किसी भी तरह उनके बीच राष्ट्रविरोधी मानसिकता के लोगों को न पनपने दें। यह भी तय है कि नक्सली इन्ही गावों से पैसों की वसूली कर अपना साम्राज्य चला रहे है। इनके भटकावे में आई जनता को सरकार जब समझा लेगी तब मजबूती के साथ सरकार और जनता मिलकर नक्सलियों का हुक्का-पानी बन्द कर सकेगी। सरकार के सहयोग से नासूर बने नक्सलियों के उपचार के लिए हमारे सुरक्षाकर्मी ही पर्याप्त है।


अवनिंद्र कुमार सिंह