2 वर्ष बाद गुरु चरण रज माथे लगाकर निहाल हुए श्रद्धालु, कीनाराम स्थल पर दर्शन को उमड़ी भीड़...
गुरु पूर्णिमा पर्व के अवसर पर रविंद्रपुरी स्थित अघोरपीठ बाबा कीनाराम स्थल में अनुयायियों द्वारा गुरु शिष्य परंपरा निभाई गई। महामारी के कारण दो वर्ष की कठिन प्रतीक्षा के बाद इस वर्ष गुरूपूर्णिमा के पावन पर्व पर, भक्तों की, अपने गुरु के चरण वंदना और दर्शन की मनोकामना पूर्ण हो पाई
वाराणसी,भदैनी मिरर। गुरु पूर्णिमा पर्व के अवसर पर रविंद्रपुरी स्थित अघोरपीठ बाबा कीनाराम स्थल में अनुयायियों द्वारा गुरु शिष्य परंपरा निभाई गई। महामारी के कारण दो वर्ष की कठिन प्रतीक्षा के बाद इस वर्ष गुरूपूर्णिमा के पावन पर्व पर, भक्तों की, अपने गुरु के चरण वंदना और दर्शन की मनोकामना पूर्ण हो पाई । इस अवसर पर वर्तमान पीठाधीश्वर, अघोराचार्य महाराज बाबा सिद्धार्थ गौतम राम का दर्शन पूजन किया । इसके साथ ही परिसर में स्थित'क्रीं-कुण्ड' में भक्तों ने डुबकी लगाई । वहीं कीनाराम आश्रम के साथ-साथ रविन्द्रपुरी कालोनी भी मेले जैसे माहौल रहा। जहाँ एक तरफ बच्चों को खिलौने और विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ आकर्षित कर रही थी वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को रंगबिरंगी श्रृंगार सामग्री की दुकानें बरबस अपनी ओर खींच रहे थे।
बता दें कि पिछले दो वर्षों से कोरोना के कारण बाबा कीनाराम स्थल में गुरु पूर्णिमा नहीं मनाया जा रहा था जिस कारण किसी भी प्रकार का आयोजन नहीं हुआ था। लेकिन इस साल गुरु कृपा से गुरु पूर्णिमा मनाने के लिए स्थितियाँ सामान्य हो गयी थी । भक्तों के आग्रह को देखते हुए अघोर पीठ के पीठाधीश्वर अघोराचार्य बाबा सिदार्थ गौतम राम जी ने गुरु पूर्णिमा मनाने की अनुमति दे दी ।
इससे पूर्व प्रातः कालीन आरती के के बाद श्रमदान एवं सफाई का कार्यक्रम तथा प्रभातफेरी निकली गयी । इसके बार पीठाधीश्वर द्वारा समस्त अघोरेश्वर की समाधियों का विधिवत पूजन एवं दर्शन किया गया । इसके बाद श्रद्धालुओं द्वारा पूज्य पीठाधीश्वर बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी का दर्शन-पूजन कर आशीर्वाद लिया गया। दोपहर 12 बजे से प्रसाद वितरण का कार्यक्रम चला जिसे श्रद्धालुजनों ने श्रद्धा भाव से ग्रहण किया |
महाराजश्री ने अपने संदेश में कहा कि "समाज आज विकट परिस्थितियों से गुज़र रहा है, ऐसे में सर्वत्र विश्वबंधुत्व की भावना ज़रुरत है । आपसी भाई चारे को बरक़रार रखने के लिये हमें आपस में प्रेम की भावना विकसित करनी होगी । अघोराचार्य न कहा कि वसुधैव कुटुंकम की भावना से ही संसार में शांति का वातावरण पैदा होगा और जनसमुदाय सुख शांति की कामना करने में सक्षम होगा।