धनतेरस पर क्यों जलाते है यम का दीपक? कारण है बेहद दिलचस्प
क्या आप जानते हैं कि धनतेरस पर यम का दीपक जलाने का कारण क्या है? आइए, इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा पर नजर डालते हैं।
हर साल कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस (Dhanteras) का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व होता है और यह दीपावली से ठीक दो दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा का विधान है। साथ ही, यम के नाम से दीपक जलाने की प्रथा भी है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि धनतेरस पर यम का दीपक जलाने का कारण क्या है? आइए, इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा पर नजर डालते हैं।
धनतेरस का विशेष महत्व
इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि से घर में समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन नई वस्तु खरीदने से उसमें वृद्धि होती है और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इसके साथ ही, अकाल मृत्यु से बचाव के लिए यम का दीपक जलाया जाता है, जो दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार पर रखा जाता है। इस दीपक को जलाते समय "मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह. त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्" मंत्र का जाप किया जाता है।
यम के दीपक की पौराणिक कथा
धनतेरस पर मृत्यु के देवता यम को दीपक अर्पित करने के पीछे एक कथा है। एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या प्राण हरते समय कभी दया का भाव आया है। इस पर संकोच करते हुए यमदूतों ने बताया कि एक बार उन्हें ऐसा अनुभव हुआ था। उस घटना के अनुसार, राजा हंस शिकार करते हुए एक अन्य राज्य की सीमा में पहुंच गए, जहां राजा हेमा ने उनका सत्कार किया। उसी दिन राजा हेमा के पुत्र का जन्म हुआ था। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मृत्यु को प्राप्त होगा।
राजा हंस ने उस बालक को यमुना के तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा और किसी स्त्री की छाया तक से दूर रखने का आदेश दिया। एक दिन राजा हंस की बेटी उस गुफा के पास आई और उसने उस बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद ही बालक की मृत्यु हो गई। यमदूतों ने बताया कि इस घटना ने उनका दिल भी पिघला दिया और बालक की मां के विलाप ने उनकी आंखों में आंसू ला दिए।
दीपदान की परंपरा की शुरुआत
इस कथा को सुनकर यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधिपूर्वक पूजा और दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। तभी से धनतेरस पर यम को दीपदान की यह प्रथा शुरू हुई, जो आज तक जारी है।