सिकुड़ी नस हुई सीधी: कार्डियोलॉजी विभाग ने की एंजियोप्लास्टी, हो सकती थी 35 वर्षीया महिला की अटैक से मौत...

Shrinked vein straightened Department of Cardiology did angioplasty 35 year old woman could have died of attackसिकुड़ी नस हुई सीधी: कार्डियोलॉजी विभाग ने की एंजियोप्लास्टी, हो सकती थी 35 वर्षीया महिला की अटैक से मौत...

सिकुड़ी नस हुई सीधी: कार्डियोलॉजी विभाग ने की एंजियोप्लास्टी, हो सकती थी 35 वर्षीया महिला की अटैक से मौत...
अस्पताल में एंजियोप्लास्टी के बाद स्वास्थ्य लाभ ले रही पीड़िता।

वाराणसी,भदैनी मिरर। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के सर सुंदरलाल अस्पताल के आईएमएस कार्डियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ओमशंकर के नेतृत्व वाली चिकित्सकों की टीम ने 35 वर्षीया महिला की कठिन एंजियोप्लास्टी कर बेहतर चिकित्सा का प्रमाण दिया है। चिकित्सकों ने बिना सर्जरी के ही एंजियोप्लास्टी कर दिल की 95% तक सिकुड़ी नस सीधी कर दी है। अस्पताल में सीने और हाथ में असहाय दर्द के शिकायत लेकर वह आई थी। अगर तुरंत ट्रीटमेंट शुरू न होता, तो वह कभी भी सडेन कार्डियक अरेस्ट का शिकार हो सकती थी।

एंजियोग्राफी से मालूम चला तकलीफ का कारण

IMS-BHU के वरिष्ठ हार्ट स्पेशलिस्ट और ह्रदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो. ओम शंकर ने कहा कि महिला का पहले एंजियोग्राफी टेस्ट हुआ था। इसमें उसके दिल के बाईं तरफ की प्रमुख नस, जहां से शुरू होती है, चिपक कर बिल्कुल धागे जैसी हो गई थी। (पहले चित्र में लाल तीर से दिखाई गई स्थिति)। यह दिल की सबसे सिवियर बीमारी मानी जाती है। इससे ग्रसित लोग अचानक चलते-फिरते ही हार्ट अटैक या पैनिक अटैक के शिकार हो जाते हैं। महिला न बीपी-शुगर की मरीज और न ही नशा करने की आदी थी। फिर भी अचानक से उसे यह रोग कैसे हो गया? यह शोध का विषय है इस पर शोध किया जाएगा। 

प्रोफेसर ओमशंकर, विभागाध्यक्ष कार्डियोलॉजी

चीर-फाड़ करें या हाथ-पैर के नस में डालें इंजेक्शन

प्रोफेसर ओम शंकर बताते हैं कि इस महिला को बचाने के लिए उनके पास दो रास्ते थे। ओपन हार्ट (बाईपास) सर्जरी या एंजियोप्लास्टी। कम उम्र, लंबा ट्रीटमेंट, भर्ती प्रक्रिया, ICU और खर्च अधिक होने की वजह से हमने सर्जरी छोड़कर एंजियोप्लास्टी को चुना। प्रो. ओम शंकर ने बताया कि इस स्थिति में ऑप्शन यह था कि उसके हाथ-पैर की नसों में इंजेक्शन डालकर फुलाया जाए। इसके बाद उसमें छल्ले या स्टेंट डाले जाए। 1-2 दिन में मरीज बिल्कुल स्वस्थ हो जाते हैं। वह भी कोई चीर-फाड़ किए बिना। इस पूरी प्रक्रिया में खर्च भी तकरीबन 50 हजार रुपए का ही आता है।महिला का ट्रीटमेंट शुरू हुआ।एंजियोप्लास्टी के दौरान दिल से जुड़ने वाली नस में तार और बैलून को बड़ी कठिनाई से प्रवेश कराया गया। नसों में छल्ला भी डाला गया। इसने नस के सिकुड़ेपन को धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लाना शुरू कर दिया। यहां पर थोड़ी सी भी चूक मरीज की जान ले सकती थी। मगर, कुशल डॉक्टरों की टीम पूरे ऑपरेशन में पॉजीटिविटी बनाए रखी। सर्जरी के बाद धागे जैसी दिखने वाली नसें, अब सामान्य नसों सी हो गई हैं। ठीक से काम कर रही हैं। (दूसरी तस्वीर, लाल तीर के निशान को देखें और पहली तस्वीर से उसकी तुलना करें)।