ध्रुपद गायक पंडित ऋत्विक सान्याल को मिला पद्म श्री अवार्ड, जाने काशी घराने से जुड़े इस महान कलाकार के बारे में...

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म अवार्ड की घोषणा कर दी गई है. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने 106 पद्म अवार्ड को मंजूरी दी है. इस सूची में वाराणसी से भी नाम शामिल है.

ध्रुपद गायक पंडित ऋत्विक सान्याल को मिला पद्म श्री अवार्ड, जाने काशी घराने से जुड़े इस महान कलाकार के बारे में...

वाराणसी, भदैनी मिरर। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म अवार्ड की घोषणा कर दी गई है. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने 106 पद्म अवार्ड को मंजूरी दी है. इस सूची में वाराणसी से भी नाम शामिल है. भारतीय शास्त्रीय गायक और वाराणसी के ध्रुपद वादक पंडित ऋत्विक सान्याल को पद्म अवार्ड से सम्मानित किया गया है. वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के संगीत विभाग से एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर और पूर्व डीन हैं. उन्हें डागर परंपरा के मुखर संगीत की ध्रुपद शैली में प्रशिक्षित किया गया था, माना जाता है कि वे स्वामी हरिदास के वंशज थे, जो पंद्रहवीं शताब्दी में रहते थे और महान तानसेन को प्रशिक्षित करते थे.

पंडित ऋत्विक सान्याल का जन्म 12 अप्रैल 1953 में कटिहार में हुआ. वर्ष 1963 और 1975 के बीच उन्होंने मुंबई, भारत में जिया मोहिउद्दीन डागर और जिया फरीद्दुद्दीन डागर के तहत ध्रुपद में अपना प्रशिक्षण प्राप्त किया. उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल करने के लिए मुंबई विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एमए और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संगीत में परास्नातक प्राप्त किया. उन्होंने अपनी पीएच.डी. प्रेम लता शर्मा की देखरेख में उसी विश्वविद्यालय से 1980 में संगीतशास्त्र में किया है. 

25 वर्षों में ध्रुपद को बढ़ाने में कई काम किया

अंतर्राष्ट्रीय 48वें ध्रुपद मेले में बातचीत के दौरान 'भदैनी मिरर' से पंडित ऋत्विक सान्याल ने कहा था की ध्रुपद कोई मनोरंजन का साधन नहीं है. यह एक साधना है. बनारस के संगीत साधकों ने ध्रुपद शैली को फिर से युवाओं में पॉपुलर कर दिया है. 
बता दें, तुलसीघाट पर आयोजित होने वाले ध्रुपद मेले में प्रत्येक साल के नियमित कलाकार पंडित ऋत्विक सान्याल ने कहा कि पिछले 25 साल में हमने इसे आगे बढ़ाने के कई काम किए हैं. उन्होंने कहा कि उनके गुरुजी कहते थे कि शास्त्रीय संगीत को लोकप्रियता की जरूरत नहीं है. इसे सीखने वाले भले ही चार-पांच हो, हमे उनके लिए काम करते रहना चाहिए. हम परंपरा के लिए काम करते हैं, लोकप्रियता का पैमाना कुछ और हो सकता है.