संतान के दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा ललही छठ, कुंडो-तालाबों पर किया पूजन...

हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ने वाले हलछठ यानी ललही छठ के अवसर पर मंगलवार को महिलाओं ने अपनी संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखकर पूजन अर्चन किया।

संतान के दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा ललही छठ, कुंडो-तालाबों पर किया पूजन...

वाराणसी,भदैनी मिरर। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ने वाले हलछठ यानी ललही छठ के अवसर पर मंगलवार को महिलाओं ने अपनी संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखकर पूजन अर्चन किया। इस दौरान व्रती महिलाओं ने शहर के कुंडों, पोखरों और गंगा नदी के पास बैठकर फल फूल के साथ कहानी सुनी और हल छठी माता का पूजन अर्चन कर अपनी संतान की लंबी कामना की। 

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के रूप में जन्म लिया था। हरछठ का व्रत संतान की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। 

होता है यह विशेष पूजन

इस दिन हल पूजन का विशेष महत्व है। इस व्रत में हल से जोता गया कुछ भी नहीं खाया जाता है। व्रती महिलाएं भैंस के दूध, दही या घी का इस्तेमाल करती हैं। इस व्रत में महिलाएं अपने प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे मिट्टी के बर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरती हैं।

इस दिन महिलाएं महुआ पेड़ की डाली का दातून करने के बाद स्नान कर व्रत रखती हैं। सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हलषष्ठी देवी की मूर्ति की पूजा करते हैं। इस पूजन की सामग्री में पचहर चांउर (बिना हल जुते हुए जमीन से उगा हुआ धान का चावल), महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध-दही व घी आदि रखते हैं। बच्चों के खिलौने जैसे- भौरा, बाटी आदि भी रखा जाता है।