BHU रुईया मैदान में दी गई मिल्खा सिंह 'फ्लाइंग सिख' को श्रद्धांजलि, याद किया गया योगदान, जाने कुछ रोचक बातें...

BHU रुईया मैदान में दी गई मिल्खा सिंह 'फ्लाइंग सिख' को श्रद्धांजलि, याद किया गया योगदान, जाने कुछ रोचक बातें...

वाराणसी, भदैनी मिरर। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के जिमखाना रुईया ग्राउंड में पद्मश्री 'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह को श्रद्धांजलि दी गई। इस दौरान मिल्खा सिंह के कटआउट पर गुलाब की पंखुड़ियों अर्पित कर जिमखाना रुईया ग्राउंड में खेल प्रेमी भावी चिकित्सकों ने मौन रखकर आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।


आईएमएस निदेशक प्रो. बी.आर. मित्तल ने कहा कि कोरोना संक्रमण के दौर ने हर किसी को प्रभावित किया है। शुक्रवार 18 जून को महान धावक एक महीने तक कोरोना संक्रमण से लड़ते हुए 91 साल में जीवन का जंग हार गए, उनके परिवार में उनके बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिंह और तीन बेटियां हैं। इससे पहले उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर ने भी कोरोना संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था। उन्होंने कहा अभी संक्रमण का खतरा टला नहीं है, हम सबको सतर्क रहने की आवश्यकता है।


इस दौरान पूर्व एमएस व रुईया ग्राउंड के अध्यक्ष प्रो. विजयनाथ मिश्र, विभागाध्यक्ष प्रो. आर.एन. चौरसिया, असिस्टेंट प्रोफेसर अभिषेक पाठक, रुईया ग्राउंड सेक्रेटरी डॉ. आर.एन. चौरसिया सहित दर्जनों खेल प्रेमी भावी चिकित्सक मौजूद रहे।


 मिल्खा का परिवार भी हुआ था त्रासदी का शिकार


मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में किसान परिवार में हुआ था। लेकिन वह अपने अपने मां-बाप की कुल 15 संतानों में से एक थे। उनका परिवार विभाजन की त्रासदी का शिकार हो गया, उस दौरान उनके माता-पिता के साथ आठ भाई-बहन भी मारे गए। इस खौफनाक मंजर को देखने वाले मिल्खा सिंह पाकिस्तान से ट्रेन की महिला बोगी में छिपकर दिल्ली पहुंचे।


जब रोटी मिली तो सोचना शुरु किया


मिल्खा ने देश के बंटवारे के बाद दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में अपने दुखदायी दिनों को याद करते हुए कहा था, 'जब पेट खाली हो तो देश के बारे में कोई कैसे सोच सकता है? जब मुझे रोटी मिली तो मैंने देश के बारे में सोचना शुरू किया।' भूख की वजह से पैदा हुए गुस्से ने उन्हें आखिरकार अपने मुकाम तक पहुंचा दिया। उन्होंने कहा था, 'जब आपके माता-पिता को आपकी आंखों के सामने मार दिया गया हो तो क्या आप कभी भूल पाएंगे... कभी नहीं।'


चार बार के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा ने 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी पीला तमगा हासिल किया था। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हालांकि 1960 के रोम ओलंपिक में था, जिसमें वह 400 मीटर फाइनल में चौथे स्थान पर रहे थे। उन्होंने 1956 और 1964 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें 1959 में पद्मश्री से नवाजा गया था।