खौफ से खात्मा तक: 1988 में सचिदानंद की हत्या से सुर्खियों में आया था मुख्तार, मऊ दंगे से योगी आदित्यनाथ के निशाने पर था माफिया...
मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में खौफ का नाम जो अब मिट्टी में दफन हो गया है. हालांकि, 90 के दशक में उससे अफसर से लेकर नेता तक डरते थे.
वाराणसी, भदैनी मिरर। मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में खौफ का नाम जो अब मिट्टी में दफन हो गया है. हालांकि, 90 के दशक में उससे अफसर से लेकर नेता तक डरते थे. कोई मुख्तार के जिले में पोस्टिंग के लिए तैयार नहीं होता था. दबंगई ऐसी थी कि मछली खाने के लिए जेल में तालाब खुदवा दिया था. मुख्तार अंसारी का अपराध में पहली बार नाम वर्ष 1988 में सामने तब आया जब मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या हुई. पहली बार मुख्तार का नाम सामने आया. इसी दौरान त्रिभुवन सिंह के कांस्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की बनारस में हत्या कर दी गई.
30 जून 1963 को गाजीपुर के युसुफपुर मुहम्मदाबाद में जन्म लेने वाला मुख्तार बांदा जेल में 28 मार्च 2024 को हार्ट अटैक आया. मुख्तार को जेल से अस्पताल पहुंचाया गया और चिकित्सक उसे बचा नहीं पाए. मुख्तार अंसारी का रसूख इसी से बता चलता है कि उस पर हत्या से लेकर जबरन वसूली तक के 65 मामले दर्ज थे. फिर भी वह विभिन्न राजनीतिक दलों के टिकट पर पांच बार विधायक चुना गया.
1990 में गाजीपुर जिले के तमाम सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह गैंग ने कब्जा शुरू कर दिया. अपने काम को बनाए रखने के लिए मुख्तार अंसारी के गिरोह से उनका सामना हुआ. यहीं से ब्रजेश सिंह के साथ मुख्तार की दुश्मनी शुरू हो गई.
यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के भाई अवधेश राय को 3 अगस्त 1991 की सुबह वाराणसी के लहुराबीर इलाके में स्थित उनके घर के बाहर मारुति वैन से आए बंदूकधारियों ने गोलियों से भून दिया. इस मामले में अजय राय चश्मदीद गवाह थे. इस मामले में अजय राय ने मुख्तार अंसारी सहित कई लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. इस मुकदमे में 5 जून 2023 को अदालत ने मुख्तार अंसारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
1991 में चंदौली में मुख्तार पुलिस की पकड़ में आया. आरोप है कि रास्ते में दो पुलिस वालों को गोली मारकर वह फरार हो गया. 1996 में एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमले में मुख्तार का नाम एक बार फिर सुर्खियों में आया. 1996 में मुख्तार पहली बार एमएलए बना. मुख्तार उसके बाद ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया. 1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला व्यवसायी रुंगटा के अपहरण के बाद उसका नाम क्राइम की दुनिया में देश में छा गया. 2001 में ब्रजेश सिंह ने मुख्तार के काफिले पर हमला कराया. इसमें मुख्तार के तीन लोग मारे गए. ब्रजेश सिंह घायल हो गए.
अक्टूबर 2005 में मऊ जिले में भड़की हिंसा के बाद उस पर कई आरोप लगे, हालांकि सभी खारिज हो गए. इस बीच गाजीपुर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, तभी से वह जेल में बंद रहा. कृष्णानंद राय से मुख्तार के भाई अफजल अंसारी चुनाव हार गए. वर्ष 2005 में मुख्तार अंसारी जेल में बंद था. इसी दौरान बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय सहित सात लोगों की हत्या कर दी गई. हमलावरों ने 6 एके-47 राइफलों से 500 से ज्यादा गोलियां चलाई थी. मारे गए लोगों के शरीर से 67 गोलियां बरामद की गई थी. इस घटना से पूरा यूपी थर्रा उठा था. इस हमले का एक महत्वपूर्ण गवाह शशिकांत राय थे वह 2006 में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए. 2012 में महाराष्ट्र सरकार ने मुख्तार पर मकोका लगाया. उनके खिलाफ हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज हैं. 2010 में अंसारी पर राम सिंह मौर्य की हत्या का आरोप लगा. राम सिंह एक स्थानीय ठेकेदार की हत्या का गवाह था.
योगी आदित्यनाथ से भी थी दुश्मनी
मऊ जिले में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे से पूरे प्रदेश में हाहाकार मचा था. इस दंगे को भड़काने के पीछे गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार का नाम सामने आया. ऐसा कहा जाता है कि उसे खुली जीप से एके-47 लहराते देखा गया.’
योगी आदित्यनाथ, जो उस समय गोरखपुर के सांसद थे, खुद मऊ के लिए रवाना हुए. लेकिन उन्हें जिले में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई. दोहरीघाट पर उन्हें रोककर वापस गोरखपुर भेज दिया गया. तब समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. योगी आदित्यनाथ की मुख्तार से यह दुश्मनी तभी से शुरु हुई थी.
दूसरा वाकया हुआ वर्ष 2008 में। योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी के नेतृत्व में आज़मगढ़ में आतंकवाद के खिलाफ एक रैली की घोषणा की. 7 सितंबर, 2008 को डीएवी कॉलेज मैदान को रैली स्थल के रूप में चुना गया था.’ योगी आदित्यनाथ ने मुख्तार अंसारी को चुनौती देते हुए कहा था कि वह मऊ दंगे के पीड़ितों को न्याय दिलाएंगे. ऐसा माना जाता है कि योगी आदित्यनाथ एक लाल एसयूवी में यात्रा कर रहे थे, जो 40 वाहनों के काफिले का हिस्सा था. इस काफिले के आज़मगढ़ पहुंचने से ठीक पहले उस पर पथराव किया गया. जिसके बाद पेट्रोल बम फेंके गए और गोलीबारी शुरू हो गई. योगी आदित्यनाथ के गनर ने भी गोलियां चलाईं. कहा जाता है कि ‘यह महज संयोग की बात थी कि योगी आदित्यनाथ ने आखिरी समय में वाहन बदल लिया और अपनी लाल एसयूवी छोड़ दी, जिससे उनकी जान बच गई. यह एक सुनियोजित हमला था.’
वर्ष 2017 में जब योगी आदित्यनाथ ने पहली बार यूपी सीएम के रुप में शपथ ली तभी से मुख्तार का काउंटडाउन शुरू हो गया. योगी आदित्यनाथ जब सीएम बने तो मुख्तार पंजाब के रोपड़ जेल में मौज काट रहा था. तत्कालीन पंजाब सरकार मुख्तार को अपने यहां रखना चाहती थी जबकि योगी सरकार उसे यूपी लाकर ट्रायल करवाने के साथ सजा करवाना चाहती थी. दोनों प्रदेश की सरकारें सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. दोनों को हलफनामा डालना पड़ा. इसी दौरान 6 अप्रैल 2021 को यूपी सरकार सफल रही और मुख्तार को यूपी लाया गया. जिसके बाद शुरू हुआ मुख्तार के दुर्दिन का सिलसिला जिसके बाद कई मामलों में कोर्ट से सजा के साथ ही लंबित पड़े कई मामलों की तेजी से ट्रायल शुरु हुआ. अब उसकी मौत के बाद न केवल उसका खौफ बल्कि उसके अपराध भी सब मिट्टी में दफन हो गए.