लंपी स्किन वायरस को लेकर वाराणसी में पशुओं का टीकाकरण शुरु, विकास खंडवार बनाई गई टीमें यह है संपर्क सूत्र...
गाय एवं भैसों में होने वाला विषाणु जनित रोग लम्पी स्किन डिजीज को लेकर जनपद में नगर निगम सीमा के 10 किमी की परिधि में एल०एस०डी० टीकाकरण अभियान चलाकर सघन टीकाकरण कार्य किया जा रहा है।
वाराणसी,भदैनी मिरर। गाय एवं भैसों में होने वाला विषाणु जनित रोग लम्पी स्किन डिजीज को लेकर जनपद में नगर निगम सीमा के 10 किमी की परिधि में एल०एस०डी० टीकाकरण अभियान चलाकर सघन टीकाकरण कार्य किया जा रहा है। अब तक जनपद वाराणसी में 63000 डोज एल०एस० डी० वैक्सीन प्राप्त हो चुकी है। जनपद के समस्त स्थाई/अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों में सभी गोवंशों को टीकाकरण कराया जा चुका है। इसकी जानकारी मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने देते हुए बताया की रोस्टर के अनुसार जिन गांवों का टीकाकरण होगा, उन गांवों में एक दिन पूर्व सम्बन्धित ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक, ग्राम पंचायत अधिकारी को सूचित किया जायेगा।
इस तरह पंचायत अधिकारी से होगा संपर्क
पशु मुख्य चिकित्साधिकारी ने बताया की एल०एस०डी० टीकाकरण हेतु विकास खण्डवार टीमों का गठन किया गया है। डा० आशीष कुमार वर्मा, हरहुआ 7398108082, डा० लवलेश सिंह, काशी विद्यापीठ 7379678759, डा० रामअधार चौधरी, चिरईगांव 7752906800, डा० सन्तोष राव, आराजीलाइन 9782633798, जितेन्द्र कुमार, पहड़िया 9415201727, कमल नयन सिंह, बच्छांव 8840450138, ऋषिकान्त सिंह यादव, टिकरी 9335418025, देवेन्द्र सिंह, राजघाट- 9170013322 व दिनेश कुमार यादव, बी०एच०यू० 9415253301नगर निगम क्षेत्र अंतर्गत कमल नयन सिंह प०प्र०अ० बच्छाव 9415992189, दिनेश यादव प०प्र०अ० बी०एच०यू0 9415253301, ऋषिकान्त सिंह यादव प०प्र०अ० टिकरी 9335418025, सुषमा गौतम प०प्र०अ० कन्दवा 8869968215 तथा जितेन्द्र कुमार प०प्र०अ० पहड़िया 99415201727 से सम्पर्क किया जा सकता है।
मक्खी और मच्छर के काटने से होता है लंपी स्किन डिजीज
चिकिसाधिकारी ने बताया की लम्पी स्किन डिजीज एक वायरस (कैप्रीवायरस) है जो पॉक्सविरिडी फैमिली के द्वारा होता है, ये मक्खी, मच्छरों के काटने से फैलता है। इस रोग में पशु को तेज बुखार, आँख व नाक से पानी गिरना, पैरों में सूजन, पूरे शरीर पर कठोर एवं चपटी गांठ आदि लक्षण पाये जाते है। कभी-कभी सम्पूर्ण शरीर की चमड़ी विशेष रूप से सिर, गर्दन, थूथन, थनों, गुदा अण्डकोष या योनिमुख के बीच के भाग पर गांठो के उभार बन जाते है।मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि गाय एवं भैसों का कभी-कभी पूरा शरीर गांठों से ढ़क जाता है। गांठे नेक्रोटिक और अल्सरेटिव भी हो सकते है, जिससे मक्खियों द्वारा अन्य स्वस्थ्य पशुओं में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। गम्भीर रूप से प्रभावित जानवरों का वजन घट जाता है, शरीर कमजोर हो जाता है।
इस तरह करें बचाव
चिकिसाधिकारी ने बताया कि प्रभावित पशु को स्वस्थ्य पशु से अलग करें। पशुओं को स्वच्छ पानी पिलायें। पशु के दूध को अच्छी तरह उबाल कर पियें। पशुओं को मच्छरों, मक्खियों, किलनी आदि से बचाने के लिए पशुओं के शरीर पर कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करें। पशु बाड़ें और पशु खलिहान की फिनायल/सोडियम हाइपोक्लोराइट इत्यादि का छिड़काव करें। बीमार पशुओं की देख भाल करने वाले व्यक्ति को स्वस्थ्य पशुओं के बाड़े से दूर रहना चाहिए। फागिंग के लिए स्थानीय स्तर पर नीम के पत्तों का धुँआ करें। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि रोग प्रकोप के समय पहले स्वस्थ्य पशुओं को चारा व पानी दें, फिर बीमार पशुओं को दें। बीमार पशुओं के प्रबन्धन के बाद हाथ साबुन से अच्छी तरह से धोयें।
तत्काल निकटतम पशुचिकित्साधिकारी को करें सूचित
चिकिसाधिकारी ने बताया की रोग की जानकारी होने पर तत्काल निकटतम पशुचिकित्साधिकारी को सूचित करें। रोग प्रकोप के समय सामूहिक चराई के लिए अपने पशुओं को न भेजे। पशु मेला एवं प्रदर्शनी में अपने पशुओं को न भेजे। बीमार एवं स्वस्थ्य पशुओं को एक साथ चारा पानी न करायें। प्रभावित क्षेत्रों से पशुओं की खरीददारी न करें। रोगी पशु के दूध को बछड़े को न पिलायें। यदि किसी पशु की मृत्यु होती है तो शव को खुलें में न फेंके तथा मृत पशुओं को गहरा गढ्ढा खोदकर नमक आदि डालकर दफनाएं।