वाराणसी, भदैनी मिरर। वृंदावन वाले राधा रानी के परम साधक प्रेमानंद जी महाराज के विचार युवाओं को खूब भाते है. उन्होंने देश के सभी उपदेशकों से आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि आप देश के जिस भी कोने से उपदेश दे रहे हो आप ‘नाम’ का उपदेश जरूर दें. 5-10 बार ही सही मगर भगवान का नाम जरूर बोल लो, इतने से ही उस जीव का मंगल हो जाएगा.
स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने उदाहरण के तौर पर कहा कि अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी अपने गुरु के आदेश पर अमेरिका गए, जहां विषय बाहुल्यता ही है, उनकी भी खोपड़ी में नाम डाल दिया. वह बीज आज खूब विस्तार को प्राप्त हो रहा है. विदेशी नागरिकों को भी नाम का रसास्वादन करवाकर मंगल-मंगल कर दिया. जिन्हें पता ही नहीं कि भक्ति क्या है, नाम क्या है, भगवान क्या है. उनके भी हृदय में ‘हरे कृष्ण- हरे कृष्ण’ भर दिया.
स्वामी प्रेमानंद जी महाराज आगे कहते है कि अगर आपके (उपदेशकों ) वचन से 10-20 भी सुधर जाए, गंदे आचरण छोड़ दें, नाम जप करने लग जाए तो यह सफलता है. मल-मूत्र बनाने वाली मशीन (शरीर) को ही हम सफलता माने और वैभव माने तो यह सफलता नहीं है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह शरीर भी टिकाऊ तो है नहीं, किस समय शरीर का कौन सा अंग फेल हो जाए, किस समय किसकी मौत हो जाए, किस समय कोई दुर्घटना घट जाए किसको पता. उन्होंने कहा कि जीवन की सफलता है भगवान की प्राप्ति, सफलता है भगवान का भजन, सफलता है परोपकार करना. यदि धन है तो दूसरों का हित करो, दूसरों को सुख दो. सोचो कोई बीमार है तो उसका सहयोग कर दें, कोई भूखा है तो उसको कुछ भोजन दे दें, यह परोपकार की भावना यह सफलता है.