देश में मंदिर और मस्जिद से जुड़े विवाद लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल जिले की एक मस्जिद, जहां मुस्लिम समुदाय नमाज अदा करता था, को लेकर नया मामला सामने आया है। अदालत के आदेश पर किए गए सर्वे में वहां एक प्राचीन शिव मंदिर के अवशेष पाए गए हैं। अब इस मंदिर की कार्बन डेटिंग के जरिए प्रामाणिकता की जांच की जाएगी। शनिवार को सर्वेक्षण दल के वहां पहुंचने की संभावना है।
उधर, राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर एक और विवाद गरमाया हुआ है। यहां शिव मंदिर होने के दावे पर दाखिल याचिका पर शुक्रवार को अजमेर की सिविल कोर्ट में सुनवाई होगी। इन बढ़ते विवादों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने चिंता व्यक्त की है।
आरएसएस प्रमुख ने जताई चिंता
पुणे में आयोजित ‘सहजीवन व्याख्यानमाला’ में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ‘भारत: विश्वगुरु’ विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोग इस तरह के विवादों को बढ़ावा देकर खुद को हिंदुओं का नेता साबित करना चाहते हैं। भागवत ने जोर दिया कि देश को दुनिया के सामने यह उदाहरण पेश करना चाहिए कि हम सद्भावना के साथ एकजुट रह सकते हैं।
भारतीय समाज की विविधता पर भागवत का संदेश
भागवत ने भारतीय समाज की विविधता और सहिष्णुता को रेखांकित करते हुए कहा कि रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस भी मनाया जाता है। उन्होंने कहा, “हम हिंदू हैं, इसलिए ऐसा कर सकते हैं। सद्भावना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। यदि हम दुनिया को इसे अपनाने का संदेश देना चाहते हैं, तो हमें इसका एक उदाहरण पेश करना होगा।”
उन्होंने आगे कहा कि राम मंदिर का निर्माण सभी हिंदुओं की आस्था से जुड़ा मामला था। लेकिन अब हर दिन नए विवाद खड़े करना स्वीकार्य नहीं है। भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि यह सभी धर्मों के साथ एकजुट रह सकता है।
कट्टरता से बचने की अपील
भागवत ने आगाह किया कि देश में कट्टरता को बढ़ावा देना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, “देश अब संविधान के अनुसार चलता है। यहां शासन लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से होता है। अधिपत्य और कट्टरता का दौर खत्म हो चुका है।” उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मुगल शासक औरंगजेब की कट्टरता इतिहास में दर्ज है, लेकिन उनके वंशज बहादुर शाह जफर ने 1857 में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया था।
अंग्रेजों की ‘फूट डालो’ नीति
भागवत ने अयोध्या विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए कहा कि राम मंदिर हिंदुओं को सौंपने की बात तय थी। लेकिन अंग्रेजों ने दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा कर दी। इसी अलगाववाद ने पाकिस्तान के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने सवाल किया, “जब सभी भारतीय कानून के सामने समान हैं, तो फिर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेदभाव क्यों?”
भागवत ने अंत में सभी से मिल-जुलकर रहने और एकता को प्राथमिकता देने की अपील की।