वाराणसी, भदैनी मिरर। मां अन्नपूर्णा का 17 दिवसीय महाव्रत मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि, यानी 20 नवंबर से आरंभ होगा। इस महाव्रत का समापन 7 दिसंबर को होगा। इस दौरान मंदिर प्रांगण को विशेष रूप से सजाया जाता है, जिसमें मुख्य आकर्षण धान की बालियों का अनूठा श्रृंगार होगा।
महाव्रत का नियम और कठिन साधना
महाव्रत के दौरान भक्त 17 दिनों तक अन्न का त्याग करते हैं और केवल एक बार फलाहार करते हैं, जो बिना नमक का होता है। यह व्रत अत्यंत कठिन और तपपूर्ण माना जाता है।
मंदिर के महंत शंकर पुरी ने बताया कि मां अन्नपूर्णा का यह व्रत और पूजन न केवल भौतिक सुख प्रदान करता है, बल्कि जीवन में अन्न, धन, और ऐश्वर्य की कभी कमी नहीं होने देता।
17 वर्ष, 17 महीने, 17 दिन की परंपरा
मंदिर प्रबंधक काशी मिश्रा ने बताया कि यह महाव्रत 17 वर्ष, 17 महीने और 17 दिन तक चलने वाली परंपरा का हिस्सा है। महाव्रत के पहले दिन मंदिर के महंत शंकर पुरी भक्तों को 17 गांठों वाला धागा प्रदान करते हैं। महिलाएं इसे बाएं और पुरुष दाहिने हाथ में धारण करते हैं।
धान की पहली फसल का अर्पण
धार्मिक मान्यता के अनुसार, किसान अपनी पहली धान की फसल मां अन्नपूर्णा को समर्पित करते हैं। 7 दिसंबर को महाव्रत का उद्यापन होगा, जिसके दिन भगवती मां का धान की बालियों से भव्य श्रृंगार किया जाएगा।
8 दिसंबर को मंदिर प्रांगण में धान की बालियों का प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाएगा। किसान इस प्रसाद को अपनी अगली फसल में मिलाते हैं, जिससे वे फसल की वृद्धि और समृद्धि की आशा करते हैं।
महाव्रत का महत्व
महंत शंकर पुरी ने इस अनुष्ठान को आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति का प्रतीक बताया। भक्तों का मानना है कि इस व्रत को करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और माता अन्नपूर्णा की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।