प्रयागराज में आगामी महाकुंभ 2025 के दौरान गंगा और यमुना नदियों में बिना शोधित मल-जल के प्रवाह को रोकने के लिए दायर याचिका पर शुक्रवार को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की प्रधान पीठ में सुनवाई हुई। चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल वेल की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता सह अधिवक्ता सौरभ तिवारी और राज्य सरकार के पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया।
दारागंज और महरौली में उच्च डिस्चार्ज का खुलासा
याचिकाकर्ता सौरभ तिवारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उन्होंने दारागंज, महरौली और रसूलाबाद सहित तीन लोकेशनों का निरीक्षण किया। इनमें दारागंज और महरौली में अत्यधिक मल-जल प्रवाह पाया गया, जबकि रसूलाबाद में पानी के प्रवाह में बाधा थी। स्थानीय निवासियों ने बताया कि वहां केवल सुबह और शाम को ही पानी उपलब्ध होता है। इस निरीक्षण की फोटोग्राफ्स और अन्य साक्ष्य रिपोर्ट के साथ संलग्न किए गए हैं।
राज्य सरकार का जवाब और प्रबंधन का आश्वासन
राज्य सरकार ने एनजीटी को आश्वस्त किया कि महाकुंभ के दौरान मल-जल डिस्चार्ज को 30 बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) के स्तर से नीचे रखा जाएगा। सरकार ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं और इस दिशा में सुधार लाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।
एनजीटी के सवाल और मॉनिटरिंग पर जोर
सुनवाई के दौरान एनजीटी ने सरकार से पूछा कि पानी की गुणवत्ता को मापने के लिए किन-किन स्थानों पर और कितनी दूरी पर मॉनिटरिंग की जाएगी। साथ ही, यह सुनिश्चित करने को कहा कि मेले के दौरान अस्थायी पॉपुलेशन के बढ़ने से स्थायी निवासियों को कोई समस्या न हो।
मेला शुरू होने तक स्वच्छता की उम्मीद
याचिकाकर्ता सौरभ तिवारी ने उम्मीद जताई कि महाकुंभ शुरू होने तक गंगा और यमुना नदियों का पानी स्वच्छ हो जाएगा और श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध रहेंगी। उन्होंने कहा कि न्यायालय के निर्देशों का पालन करने से महाकुंभ के दौरान प्रदूषण नियंत्रण संभव हो सकेगा।