वाराणसी, भदैनी मिरर। काशी की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रोत्साहित करने वाले अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवाक विश्वविद्यालय के सातवें वार्षिकोत्सव का आयोजन भव्य तरीके से हुआ। इस बार का केंद्रीय विषय घाटवाक का ज्ञानोत्सव’ रखा गया, जिसके तहत काशी के विभिन्न घाटों से गुजरते हुए संस्कृति, परंपरा और ज्ञान पर विस्तृत चर्चा हुई।
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रीवाघाट से हुआ उद्घाटन, राजघाट पर संपन्न हुआ आयोजन
कार्यक्रम का शुभारंभ रीवाघाट से हुआ, जहां गणेश वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। उद्घाटन सत्र में काशी घाटवाक के संस्थापक प्रो. विजयनाथ मिश्र ने कहा,”घाटवाक केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि काशी की जीवंत विरासत है। यहाँ के प्रत्येक घाट ज्ञान का भंडार हैं और हमें इस विरासत से जुड़ना चाहिए।”
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मुख्य अतिथि पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने काशी को “परम कुंभ” बताते हुए कहा,”यहाँ हर व्यक्ति में ज्ञान की संभावना है, अहंकार से मुक्ति मिलती है और घाटों पर अद्भुत ज्ञान की संपदा समाहित है।
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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र ने कहा, काशी भगवान शिव का प्रसाद है और यहां के घाट सांस्कृतिक कोड की तरह हैं। ये केवल नदी के किनारे नहीं, बल्कि संस्कृति और ज्ञान के आधार हैं।”
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महिला सम्मान सत्र और कबीर गायन से गूंजे घाट
घाटवाक के अगले पड़ाव पर मानसरोवर घाट पर महिला सम्मान सत्र आयोजित किया गया, जहां विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया। इसके बाद गुलेरिया कोठी पर ताना-बाना समूह द्वारा कबीर गायन प्रस्तुत किया गया, जिसने काशी की ज्ञान परंपरा से नई पीढ़ी को जोड़ने का कार्य किया।
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रामघाट पर आयोजित संवाद सत्र में अहिल्याबाई होल्कर के काशी विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट के निर्माण में योगदान को रेखांकित किया गया। वक्ताओं ने उनके सामाजिक और धार्मिक योगदान पर विस्तार से चर्चा की।
समापन समारोह राजघाट पर हुआ, जहां वक्ताओं ने घाटवाक की महत्ता पर प्रकाश डाला। पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह ने कहा, “घाटवाक जीवन के उल्लास का आधार है।
डॉ. श्रीप्रकाश शुक्ल ने इसे केवल योग नहीं बल्कि महायोग का आधार बताया।
प्रो. विजयनाथ मिश्र ने कहा,”घाटवाक संस्कृति का प्रवाह है और यह जीवन में उल्लास भरता है।
मनीष खत्री ने कहा कि इस आयोजन से नई पीढ़ी में काशी की ज्ञान परंपरा के प्रति जिज्ञासा बढ़ेगी।
आखिरी पड़ाव: बजड़े पर संगीत और नृत्य
कार्यक्रम के अंत में, गंगा की लहरों पर बजड़े पर संगीत और नृत्य का आयोजन हुआ, जिसने घाटवाक के इस अनुभव को और भी यादगार बना दिया।
कार्यक्रम का संयोजन जितेंद्र कुशवाहा और संदीप त्रिपाठी ने किया, जबकि संचालन डॉ. आर्यपुत्र दीपक ने किया। शैलेश तिवारी ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।
इस वार्षिकोत्सव में अमिताभ गौतम, अवनींद्र सिंह, अभिषेक गुप्ता, कृष्ण मोहन पांडेय, अभय तिवारी, सुधीर त्रिपाठी, शोभनाथ यादव, गोविंद सिंह समेत सैकड़ों घाटवाकरों ने भाग लिया।