Home महाकुंभ-2025 Mahakumbh 2025 : नागा साधु करते हैं कितने प्रकार का श्रृंगार? जानिए क्या होता है खास

Mahakumbh 2025 : नागा साधु करते हैं कितने प्रकार का श्रृंगार? जानिए क्या होता है खास

by Ankita Yadav
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Mahakumbh 2025 : महाकुंभ 2025 के पहले अमृत स्नान के दौरान मकर संक्रांति पर संगम तट पर एक अद्भुत नजारा देखने को मिला। नागा साधु घोड़ों पर सवार होकर संगम की ओर प्रस्थान करते नजर आए। अपने शरीर पर भस्म लपेटे हुए, विभिन्न रूपों में साधु आकर्षण का केंद्र बने। नागा साधुओं का श्रृंगार अद्वितीय होता है, जिसमें 17 विशेषताएं शामिल होती हैं।

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Mahakumbh 2025 : नागा साधुओं के 17 प्रकार के श्रृंगार:

  1. भभूत: शरीर पर भभूत का लेप किया जाता है।
  2. चंदन: माथे, गले और हाथों पर चंदन लगाया जाता है।
  3. रुद्राक्ष: गले, सिर और बाजुओं में रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है।
  4. तिलक: माथे पर तिलक लगाया जाता है।
  5. सूरमा: आंखों में सूरमा लगाया जाता है।
  6. कड़ा : हाथ, पैर और बाजुओं में कड़े पहने जाते हैं।
  7. चिमटा : हाथ में चिमटा धारण करते हैं, जिसे उनका अस्त्र माना जाता है।
  8. डमरू : कुछ साधु डमरू भी साथ रखते हैं।
  9. कमंडल : जल रखने के लिए कमंडल साथ होता है।
  10. जटा : साधुओं की जटाएं विशेष रूप से पंचकेश में लिपटी होती हैं।
  11. लंगोट : भगवा रंग का लंगोट धारण करते हैं।
  12. अंगूठी : उंगलियों में अंगूठी पहनी जाती है।
  13. रोली : माथे पर रोली का लेप लगाया जाता है।
  14. कुंडल : बड़े-बड़े चांदी या सोने के कुंडल धारण करते हैं।
  15. माला : कमर में खास माला पहनी जाती है।
  16. विश्वमंगल की भावना : लोकमंगल की कामना भी उनके श्रृंगार का हिस्सा मानी जाती है।
  17. वाणी : उनकी वाणी को भी विशेष श्रृंगार माना गया है।

नागा साधुओं की संख्या और उनकी जीवनशैली

भारत में नागा साधुओं की अनुमानित संख्या लगभग पांच लाख है, हालांकि इस विषय पर सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। ये साधु मुख्यतः अखाड़ों के सदस्य होते हैं। इनमें वस्त्रधारी और दिगंबर (निर्वस्त्र) साधु शामिल हैं। महिला साध्वी भी नागा दीक्षा लेकर साधु बन सकती हैं। कुछ नागा साधु मांसाहारी होते हैं, जबकि कई शाकाहारी जीवन अपनाते हैं। नागा बनने के लिए अखाड़ों के पास आवेदन किए जाते हैं, लेकिन सभी को यह सम्मान नहीं मिलता।

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नागा साधुओं की दीक्षा प्रक्रिया

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नागा साधु बनने का मार्ग कठिन और तपस्वी है। सुदामा गिरी जी महाराज, जो महाकुंभ में धुनी रमाए बैठे हैं, ने बताया कि दीक्षा की प्रक्रिया 12 वर्षों की होती है। इस दौरान शुरुआती तीन साल के लिए साधु को “बानगीदार” कहा जाता है। यह व्यक्ति पूजा-पाठ में सहायता करता है और अखाड़े की गतिविधियों में भाग लेता है। इस अवधि में उसे खाना बनाना, शास्त्र और शस्त्र विद्या, और अन्य आवश्यक शिक्षाएं प्रदान की जाती हैं।

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नागा साधुओं से प्रभावित विदेशी

अमेरिका से आए योनस ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को समझने के लिए नागा साधुओं के साथ समय बिताया है। चार वर्षों तक उनके साथ निकटता से रहने के बाद योनस इन साधुओं के जीवन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खुद नागा साधु बनने की इच्छा जताई है।

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नागा साधुओं के महत्व पर संतों की राय

प्रयागराज महाकुंभ में जुटे संतों ने नागा साधुओं की बढ़ती संख्या को समाज के लिए आवश्यक बताया। संतों ने सुझाव दिया कि पढ़े-लिखे लोग भी नागा साधु बनें, जिससे समाज को नई दिशा मिल सके।

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