
वाराणसी: नाटी इमली में 482वां भरत मिलाप 3 अक्टूबर को, राम और भरत के मिलन का साक्षी बनती है काशी
DM ने निरीक्षण कर सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की, जाने इतिहास और परम्परा



वाराणसी। जिलाधिकारी ने नाटी इमली में 3 अक्टूबर को आयोजित होने वाले भरत मिलाप कार्यक्रम के दृष्टिगत निरीक्षण किया। इस दौरान अधिकारियों और चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक के साथ कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों की संख्या, सुरक्षा व अन्य जरूरी व्यवस्थाओं पर गहन चर्चा हुई।


जिलाधिकारी ने मैदान परिसर में खड़ी कबाड़ गाड़ियों को हटाने के निर्देश दिए और सीएमओ से मेडिकल टीम तैनाती, विद्युत व फायर सेफ्टी विभाग द्वारा सुरक्षा ऑडिट कराने के निर्देश दिए। भीड़ अधिक होने के कारण पुलिस को एडवांस लाइफ सपोर्ट जैकेट की उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए गए। इस दौरान एडीएम सिटी आलोक कुमार वर्मा, एडीसीपी सरवनन टी, डॉ. ईशान सोनी सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।

482 साल पुरानी परंपरा
नाटी इमली में भरत मिलाप का आयोजन पिछले 481 वर्षों से लगातार हो रहा है। इस वर्ष यह कार्यक्रम 482वां साल मनाया जाएगा। कार्यक्रम में श्रद्धालुओं की भीड़ इतनी बड़ी होती है कि मैदान में तिल रखने तक की जगह नहीं रहती। पांच टन वजन का पुष्पक विमान यादव बंधु द्वारा लाया जाता है, जिसे उठाते समय वातावरण में ठहराव सा महसूस होता है।

तुलसीदास और यादव बंधु का इतिहास
यादव बंधु का इतिहास संत तुलसीदास के काल से जुड़ा है। तुलसीदास ने गंगा घाट किनारे रहकर रामचरितमानस लिखा, लेकिन इसे जन-जन तक पहुँचाने का बीड़ा मेघाभगत ने उठाया। जाति के अहीर मेघाभगत ने सर्वप्रथम काशी में रामलीला मंचन की शुरुआत की।
काशी राज परिवार की भागीदारी
पिछले 228 वर्षों से काशी राज परिवार भी इस परंपरा का साक्षी बनता रहा है। पहले काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने 1796 में इस लीला में भाग लिया था और तब से पांच पीढ़ियों से यह परंपरा निभाई जा रही है।
नाटी इमली का भरत मिलाप न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि काशी की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी जीवित रखता है।

