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मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ फील्ड वर्कर्स की हड़ताल : वाराणसी में UPMSRA कर्मियों ने उठाई आवाज, श्रम संहिताओं की वापसी की मांग

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वाराणसी, भदैनी मिरर। देशभर में आज मेडिकल और सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ आम हड़ताल पर हैं। एफएमआरएआई (FMRAI) और उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड मेडिकल एवं सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन (UPMSRA) के संयुक्त आह्वान पर आयोजित इस हड़ताल में हजारों फील्ड वर्कर्स शामिल हैं, जो सरकार से रोजगार सुरक्षा, कार्यस्थल की गरिमा और सेवा शर्तों की बहाली की मांग कर रहे हैं। इसी क्रम में वाराणसी में भी (UPMSRA के कर्मी भी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे है। 

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सरकार की अधिसूचनाओं का उल्लंघन

संगठन का कहना है कि 1967 की GSR-843 अधिसूचना के तहत मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स को अस्पताल परिसर में कार्य की अनुमति दी गई थी, लेकिन हालिया सरकारी नोटिस इस नीति का उल्लंघन करते हैं। यह सब कुछ कथित रूप से जेनेरिक दवाओं के बाज़ार पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए किया जा रहा है, जिससे कुछ चुनिंदा कॉरपोरेट समूहों को फायदा पहुंच रहा है। एफएमआरएआई का आरोप है कि सरकार की नीतियों से न केवल कर्मचारियों का कार्यक्षेत्र संकुचित हुआ है, बल्कि SPE (सेल्स प्रमोशन एग्जीक्यूटिव्स) की नौकरियों पर भी संकट मंडरा रहा है।

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श्रम संहिताओं के खिलाफ गुस्सा

UPMSRA का कहना है कि नई चार श्रम संहिताएं —

  1. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य शर्त संहिता 2020,

  2. औद्योगिक संबंध संहिता 2020,

  3. कर्मचारी सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020,

  4. वेतन संहिता 2019- मजदूरों के मौलिक अधिकारों को खत्म कर देंगी। यूनियन बनाने, सामूहिक शिकायत, और हड़ताल जैसे अधिकारों को भी "संगठित अपराध" की श्रेणी में लाया जा रहा है।

स्थायी नौकरियों का ठेकेदारीकरण

FMRAI का कहना है कि सरकार स्थायी पदों को खत्म कर अस्थायी और निश्चित अवधि रोजगार को बढ़ावा दे रही है। इससे न केवल कर्मचारियों की सुरक्षा खतरे में है, बल्कि उन्हें न्यूनतम वेतन, बोनस और समान पारिश्रमिक जैसे लाभों से भी वंचित किया जा रहा है।

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आंदोलन की चेतावनी

FMRAI और UPMSRA ने सरकार से मांग की है कि—

  • मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स के खिलाफ बनाए गए कड़े नियमों को वापस लिया जाए

  • श्रम संहिताओं को निरस्त किया जाए

  • कार्यस्थल पर सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए

अगर मांगे नहीं मानी जाती हैं, तो संगठन देशव्यापी आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी दे रहे हैं।

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