
वाराणसी में गंगा पार टेंट सिटी मामला : एनजीटी ने राज्य सरकार से कहा-दो सप्ताह में दें पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति वसूली की रिपोर्ट
न्यायमूर्ति ने राज्य सरकार के वकील से पूछा-किस कानून के तहत आपके प्रमुख सचिव, गुजरात के पर्यावरण विभाग को पत्र लिख रहे हैं




पत्र तो वाराणसी के जिलाधिकारी को अहमदाबाद (गुजरात) के जिलाधिकारी को लिखना चाहिए
एनजीटी ने कहा-पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति राशि वसूलने की जिम्मेदारी आपकी है
वाराणसी, भदैनी मिरर। काशी में गंगा पार टेंट सिटी बसानेवाली कंपनियों से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति राशि वसूलने में सरकार की लापरवाही पर एनजीटी ने गंभीर रूख अख्तियार किया है। न्यायमूर्ति ने राज्य सरकार के अधिवक्ता से कई अहम सवाल किये और जिम्मेदारी तय की। इस मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने पक्ष रखा।


एनजीटी प्रधान पीठ नई दिल्ली के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं विशेषज्ञ सदस्य डा. ए.सेंथिल वेल की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। एनजीटी ने दो सप्ताह के भीतर राज्य सरकार से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की वसूली की प्रभावी प्रक्रिया और की गई कार्रवाई का विवरण मांग लिया है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील भंवर पाल सिंह जादौन ने एनजीटी को बताया कि प्रमुख सचिव, पर्यावरण विभाग उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गुजरात सरकार के पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव को 13 अगस्त 2024 एवं 22 मई 2025 को टेंट कंपनियों से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति कि वसूली के लिए पत्र लिखा गया है।


इस पर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने राज्य सरकार के अधिवक्ता से कहाकि किस कानून के तहत आपके प्रमुख सचिव, पर्यावरण विभाग गुजरात सरकार के पर्यावरण विभाग को पत्र लिख रहे हैं ? न्यायमूर्ति ने कहा कि उत्तर प्रदेश के रेवेन्यू कानून के मुताबिक यहां के जिलाधिकारी को गुजरात, अहमदाबाद के जिलाधिकारी को पत्र लिखना चाहिए। एनजीटी ने राज्य सरकार के अधिवक्ता द्वारा जिलाधिकारी, अहमदाबाद को पक्षकार बनाने के मौखिक अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। साथ ही एनजीटी ने कहाकि यह आपकी जिम्मेदारी है कि आपको पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति राशि वसूलनी है।

इसके साथ ही एनजीटी ने आदेश द्वारा राज्य सरकार से यह भी जबाब मांगा है कि किस कानूनी प्रावधानों के तहत प्रमुख सचिव पर्यावरण विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गुजरात सरकार को पत्र लिखा गया है। एनजीटी के तीन सदस्यीय पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि कछुआ सेंचुरी की अधिसूचना को रद्द करके कछुआ अभ्यारण्य को पूर्णतया हटाने से वहां के पर्यावरण को नुक़सान हुआ है। वहां के कछुआ आखिर कहां गये, अगर 500 भी कछुआ थे तो कहां गये। इस पर राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि कछुआ सेंचुरी का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, ऐसे में इस पर ट्रिब्यूनल के समक्ष विचार करना उचित नहीं है।
इस पर एनजीटी की पीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहाकि सुप्रीम कोर्ट ने तो डिनोटिफिकेशन पर रोक लगाई है, लेकिन आपने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए कछुआ सेंचुरी को डिनोटिफाइड कर दिया। एनजीटी ने कहा कि कछुआ सेंचुरी को हटाने के फलस्वरूप पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को लेकर हम सुनवाई कर सकते हैं। एनजीटी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कछुआ सेंचुरी के डिनोटिफिकेशन/हटाने को लेकर विचाराधीन याचिका के दायरे को लेकर भी जबाब मांगा है। गौरतलब है कि वाराणसी में गंगा के पार रेत पर अहमदाबाद की टेंट कंपनियों प्रवेग एवं निरान ने टेंट सिटी बनाई थी। एनजीटी की सख्ती के बाद दोनों टेंट कंपनियों पर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 17,12,500 (सत्रह लाख बारह हजार पांच सौ रुपए) कुल 34,25,000 (चौंतीस लाख पच्चीस हजार रुपए) का जुर्माना लगाया था। इस प्रकरण में याचिकाकर्ता तुषार गोस्वामी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ तिवारी पक्ष रख रहे हैं। अब इस मामले की अगली सुनवाई 19 अगस्त को होगी।

