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BHU में दलित छात्र के धरने का मामला राष्ट्रपति तक पहुंचा, विधायक रागिनी सोनकर ने लिखा पत्र, की न्याय की मांग 

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वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में पिछले 15 दिनों से वीसी आवास के बाहर धरने पर बैठे दलित छात्र शिवम सोनकर के मामले ने अब राष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ लिया है। समाजवादी पार्टी की विधायक रागिनी सोनकर ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, यूजीसी चेयरमैन और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह मामला सिर्फ शिवम सोनकर के साथ अन्याय नहीं है, बल्कि दलित छात्रों के शैक्षणिक भविष्य को बाधित करने का गंभीर उदाहरण है।

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क्या है पूरा मामला?

शिवम सोनकर का आरोप है कि उन्होंने 2024-25 सत्र के लिए पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में आवेदन किया था। उनके विभाग में RET EXEMPTED श्रेणी में 3 सीटें खाली थीं, जबकि RET मोड में केवल 2 सीटें उपलब्ध थीं।

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इसके बावजूद, विश्वविद्यालय प्रशासन ने सिर्फ RET मोड की 2 सीटों पर ही प्रवेश दिया, लेकिन RET EXEMPTED की 3 सीटें खाली होने के बावजूद शिवम सोनकर को दाखिला नहीं दिया गया। इस फैसले के खिलाफ वे 15 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।

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विधायक रागिनी सोनकर ने उठाई आवाज

विधायक रागिनी सोनकर ने इस मामले को शिक्षा में सामाजिक न्याय के खिलाफ बताते हुए कहा, "यह संविधान में प्रदत्त समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।" उन्होंने गहन जांच और तत्काल कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि पीड़ित छात्र को न्याय मिले और उसे पीएचडी प्रवेश दिया जाए।

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उन्होंने यह भी कहा कि "शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव रोकने के लिए ठोस नियम बनाए जाने चाहिए और देशभर के विश्वविद्यालयों में समान अवसर सुनिश्चित किए जाने चाहिए।"

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यूजीसी चेयरमैन से मुलाकात और बीएचयू गेट पर प्रदर्शन

इस मामले में डॉ. रागिनी सोनकर ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के चेयरमैन से मुलाकात की और BHU की पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में शिवम सोनकर के लिए न्याय की मांग उठाई।

इसके अलावा, रागिनी सोनकर खुद शिवम सोनकर के साथ बीएचयू गेट के बाहर प्रदर्शन भी कर चुकी हैं।

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विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष – नियमों के तहत हुआ प्रवेश

बीएचयू प्रशासन ने एक आधिकारिक बयान जारी कर सफाई दी है। प्रशासन के अनुसार, छात्र ने RET मेन्स के तहत आवेदन किया था, जहां केवल 2 सीटें थीं। इनमें एक सीट जनरल और दूसरी ओबीसी उम्मीदवार को दी गई। शिवम सोनकर का रैंक दो होने के कारण उन्हें प्रवेश नहीं मिल पाया।

प्रशासन का कहना है कि छात्र अब RET EXEMPTED की खाली सीटों को मेन्स में बदलकर दाखिले की मांग कर रहे हैं, लेकिन यह पीएचडी नियमों के तहत संभव नहीं है।

हालांकि, इस पूरे मामले ने शिक्षा में समान अवसर और जातिगत भेदभाव को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। अब देखना होगा कि राष्ट्रपति और यूजीसी इस पर क्या कदम उठाते हैं।

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