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सुख व कल्याण का मापदंड भौतिकता नहीं बल्कि सर्वकल्याण की भावना : प्रो. आनंद त्यागी

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सुख व कल्याण का मापदंड भौतिकता नहीं बल्कि सर्वकल्याण की भावना : प्रो. आनंद त्यागी
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वाराणसी। स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज में बारहवें दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का शुभारम्भ हुआ। इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का मुख्य विषय "बहुसंकट के मध्य सुख व कल्याण: भारतीय ज्ञान परम्परा से प्राप्त अंतरदृष्टि है। दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के उदघाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो० आनंद त्यागी ने कहा कि सही मायनों में ज्ञान स्वार्थ से नहीं बल्कि मानव कल्याण के लिए उपजता है. उन्होंने कहा कि खुशी को सामान्यतः विकास के पैमानों के आधार पर मापा जाता है। यह मापदंड जनोन्मुखी होना चाहिए न कि भौतिकतावाद।

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सुख व कल्याण का मापदंड भौतिकता नहीं बल्कि सर्वकल्याण की भावना : प्रो. आनंद त्यागी

युवाओं से आह्वान करते हुए प्रो त्यागी ने कहा कि उपनिषदों व वेदों में निहित ज्ञान के सूत्र को सीखें, उन्हें अपनायें, इसी में वास्तविक परमानन्द प्राप्त हो सकता है, ज्ञान वही है जो हमें प्रकृति के साथ समन्वय बैठाकर सहज रूप से जीना सिखाये, ज्ञान केवल संसाधनों पर निर्भर न रहें। हमें एक देश के रूप में अन्य देशों से सीखना होगा कि किस तरह से वे शिक्षा व कला के आधार पर अस्तित्व की समस्या से न सिर्फ बाहर निकले बल्कि मजबूती से वैश्विक स्तर पर खड़े हो पाए।

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कॉन्फ्रेंस में बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित शक्तिधाम के महामंडलेश्वर स्वामी परमेश्वर दास महाराज ने कहा की अगर हमे अपने जीवन में किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति करनी है या सुख - शांति को प्राप्त करना है तो हमे अपने आप को पहचानना होगा। उन्होंने कहा कि हमे भगवान शिव से सीखना चाहिए जो निर्माणकर्ता और विनाशक दोनों ही रूपों के धारक हैं , उसी प्रकार मानव शरीर भी अच्छाई और बुराई का धारक है तो यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वे परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को कैसे ढालते हैं। स्वामी जी ने युवा पीढ़ी को निस्वार्थ सेवा करने का आह्वान करते हुए कहा कि हम सबको एक दूसरे की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए। शाश्वतता का अमृत हमारे भीतर ही मौजूद है।

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सुख व कल्याण का मापदंड भौतिकता नहीं बल्कि सर्वकल्याण की भावना : प्रो. आनंद त्यागी

कार्यक्रम में उपस्थित विशिष्ट अतिथि प्रो० सदाशिव द्विवेदी ने खुशी और सामाजिक कल्याण को रेखांकित करते हुए कहा कि नीतियों व बहुसंकट एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा को त्रिआयामी बताते हुए कहा कि वास्तव में प्राचीन भारतीय ज्ञान के केंद्र में लोक, संवाद व तार्किकता निहित है, प्रो० द्विवेदी ने कहा कि तार्किक संवाद से निकले ज्ञान को ही लोक ने मान्यता दी है, इसलिए प्राचीन ज्ञान वैज्ञानिक भी है. उन्होंने कौटिल्य नीति पर आधारित तर्क व धन नीति को आज के समय में समीचीन बताया।

कार्यक्रम में उपस्थित एक अन्य विशिष्ट अतिथि श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के पूर्व प्रोफ़ेसर प्रो. सी.एस. शर्मा ने समझाया कि खुशी और कल्याण का वास्तविक अर्थ क्या है। उन्होंने उल्लेख किया कि सुपर ऑर्डिनेट लक्ष्य ब्रह्मांड के साथ रहना है। उद्धरण देते हुए प्रो. शर्मा ने कहा कि जो कुछ भी मापा नहीं जा सकता उसका अस्तित्व नहीं है। संपूर्णता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने बताया कि ब्रह्मांड यंत्रवत है। प्रो.शर्मा ने उन चुनौतीपूर्ण पहलुओं के बारे में भी बात की जो अब कक्षाओं में प्रवेश कर चुके हैं।

उन्होंने कहा कि समस्याएं तब हल होंगी जब लोग भारतीय ज्ञान प्रणाली को समझेंगे. हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में, कर्म की अवधारणा बताती है कि किसी व्यक्ति के पिछले जीवन में किए गए कार्य उसके वर्तमान और भविष्य के जीवन को प्रभावित कर सकते हैं। इस विचार को अक्सर "कर्म का नियम" या "कर्मिक ऋण" कहा जाता है।

सुख व कल्याण का मापदंड भौतिकता नहीं बल्कि सर्वकल्याण की भावना : प्रो. आनंद त्यागी

कॉन्फ्रेंस में ओपन स्पेसेस कंसल्टिंग, मुंबई की मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ० अनीता मधोक ने कहा कि हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान को मन और आत्मा को शांत करने में मदद करने वाला माना जाता है और यह पिछले जीवन के कर्मों को हल करने में भी मदद कर सकता है । नियमित ध्यान अभ्यास से व्यक्ति को संतुलन और सद्भाव प्रदान करने में मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि कर्मों से पलायन में व्यक्ति सही मायनों में मोक्ष अंगीकार नहीं कर सकता। ध्यान की शक्ति से पिछले जीवन के कर्मों का बोझ हल्का होता है और आत्मा को शांति मिलती है।

दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में अतिथियों का स्वागत करते हुए एस. एम. एस. वाराणसी के निदेशक प्रो. पी. एन. झा ने कहा कि एस.एम.एस. वाराणसी न केवल अकादमिक बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को लेकर भी सजग है, उन्होंने महाभारत, गीता और रामायण को आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिक बताते हुए कहा कि ज्ञान प्रमुख रूप से पवित्रीकरण करने का साधन है।

इस अवसर पर बहुसंकट के मध्य सुख व कल्याण: भारतीय ज्ञान परम्परा से प्राप्त अंतर्दृष्टि पर आधारित स्मारिका का भी विमोचन किया गया । उदघाटन सत्र का संचालन प्रो० पल्लवी पाठक ने व धन्यवाद ज्ञापन कॉन्फ्रेंस के समन्वयक प्रो० अमिताभ पांडेय ने दिया। दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के पहले दिन अलग अलग तकनीकी सत्रों का आयोजन भी हुआ जिसमें देश-विदेश से आये लगभग 300 से अधिक प्रतिभागियों ने शोध-पत्र प्रस्तुत किया । इस अवसर पर एस०एम०एस०, वाराणसी के अधिशासी सचिव डॉ० एम० पी० सिंह, निदेशक प्रो. पी. एन. झा, कुलसचिव श्री संजय गुप्ता, प्रो० संदीप सिंह, प्रो० अविनाश चंद्र सुपकर, प्रो० राजकुमार सिंह सहित समस्त अध्यापक और कर्मचारी गण उपस्थित रहे।

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