काशी घाटवॉक के तत्वावधान में रानी लक्ष्मीबाई पर संगोष्ठी, 14 दिसंबर को हर साल होगी ‘लक्ष्मी दीपावली’
अस्सी स्थित रानी लक्ष्मीबाई जन्मस्थान पर हुआ आयोजन, काशी की विरासत और स्वराज चेतना पर हुआ विमर्श
वाराणसी। अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक के तत्वावधान में शुक्रवार को अस्सी स्थित रानी लक्ष्मीबाई जन्मस्थान पर “काशी की विरासत व रानी लक्ष्मीबाई” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में रानी लक्ष्मीबाई के ऐतिहासिक योगदान पर विस्तार से चर्चा की गई, साथ ही घाटवॉक के आगामी आयोजनों को लेकर भी विचार-विमर्श हुआ।



कार्यक्रम की शुरुआत रानी लक्ष्मीबाई की स्मृति में दीप प्रज्वलन से हुई। इस अवसर पर उपस्थित सभी घाटवॉक सदस्यों ने संकल्प लिया कि प्रत्येक वर्ष 14 दिसंबर को इसी जन्मस्थान पर ‘लक्ष्मी दीपावली’ का आयोजन किया जाएगा। आयोजकों के अनुसार, इस पहल के माध्यम से काशी की विरासत और वर्तमान के बीच एक सशक्त संवाद स्थापित किया जाएगा।


कार्यक्रम में लोक कलाकार अष्टभुजा मिश्र ने सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता “खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। वहीं, भूमिका ने रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र का सजीव अभिनय कर उपस्थित जनसमूह को भाव-विभोर कर दिया।
स्वागत वक्तव्य देते हुए अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं न्यूरो चिकित्सक प्रो. विजयनाथ मिश्र ने घाटवॉक विश्वविद्यालय की अवधारणा और आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अपनी धरोहर को पहचानना समय की आवश्यकता है, जिससे काशी की विरासत पर गर्व की अनुभूति होती है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि घाटवॉक विश्वविद्यालय अपनी सांस्कृतिक धरोहर को पहचानने के लिए दृढ़ संकल्पित है। उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को स्वराज के लिए समर्पित वीरांगना बताते हुए कहा कि वे काशी की ही बेटी थीं, इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है। उन्होंने कहा कि “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी” केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि स्वराज का आह्वान था। उन्होंने झलकारीबाई के योगदान को भी याद किया और बताया कि लक्ष्मीबाई का बचपन काशी में बीता।
समाजवादी नेता सूबेदार सिंह ने कहा कि घाटवॉक से वे मानसिक रूप से हमेशा जुड़े रहते हैं। उन्होंने बालूवॉक की अवधारणा की सराहना करते हुए कहा कि बालू पर चलना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और यह विचार डॉ. विजयनाथ मिश्र जैसे चिकित्सक की सोच का परिणाम है।
डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि धरोहर से जुड़ना आत्मसार्थकता का अनुभव कराता है। रानी लक्ष्मीबाई के व्यक्तित्व में मातृत्व और वीरता का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ प्रज्वलित किए गए क्रांति के दीप आज भी हमें दिशा और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
कार्यक्रम का संचालन रामयश मिश्र ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन शैलेश तिवारी ने दिया। कार्यक्रम के अंत में जरूरतमंदों के बीच लगभग दो दर्जन कंबलों का वितरण किया गया। इस अवसर पर घाटवॉक के अनेक सदस्य और बड़ी संख्या में घाटवाकर उपस्थित रहे।
