
वैज्ञानिकों ने किया विश्व पर्यावरण दिवस पर किसानों से हरित संवाद
8वें दिन वाराणसी में वैज्ञानिकों ने 600 से अधिक किसानों से किया संवाद




विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण, नीम, पीपल, महुआ के साथ हरित भविष्य का संदेश
किसानों की समस्याओं पर दिए गए व्यावहारिक समाधान
वाराणसी, भदैनी मिरर। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान की ओर से छह जिलों में चलाये जा रहे विकसित कृषि संकल्प अभियान के 8वें दिन विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इस दिन तीन वैज्ञानिक टीमों ने हरहुआ, काशी विद्यापीठ एवं सेवापुरी विकास खंड के 12 से अधिक गांवों में कृषक संवाद एवं वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किए। वैज्ञानिकों ने नीम, पीपल, महुआ जैसे देशज वृक्षों का रोपण कर यह संदेश दिया कि विकसित कृषि का रास्ता, संरक्षित पर्यावरण से होकर ही जाता है। वृक्षारोपण के साथ-साथ वैज्ञानिकों ने किसानों को जैविक खेती, मृदा परीक्षण, जैविक खाद निर्माण एवं जल संरक्षण के उपायों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कुल 600 से अधिक किसानों से सीधा संवाद किया गया, इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं थीं। यह महिला किसानों की सक्रिय भागीदारी और कृषि में बढ़ती भूमिका का संकेत है। कुल 9 कार्यक्रमों में 50 से अधिक किसानों ने वैज्ञानिकों से सीधे तौर पर चर्चा कर अपनी समस्याएं साझा कीं। डॉ. अच्युत सिंह, डॉ. पी. कर्मकार और डॉ. आशुतोष राय की टीम ने हरहुआ ब्लॉक के घमहापुर गांव में कार्यक्रम किया, जहां किसानों ने फसलों में माइट, फ्ली बीटल, धान की नर्सरी में पीलापन जैसी समस्याएं बताईं, जिनके निराकरण के उपाय सुझाये गए।


डॉ. विद्या सागर और डॉ. ज्योति देवी की टीम ने कृषि विज्ञान केंद्र वाराणसी के डॉ. अमितेश सिंह एवं डॉ. प्रतीक्षा सिंह साथ भाग लिया। उन्होंने किसानों को बहु-आयामी विषयों जैसे जैविक खेती, जल संरक्षण, मल्चिंग, कृषि वानिकी, वर्मी कम्पोस्ट आदि टिकाऊ खेती के उपायों पर जानकारी दी। पर्यावरण संतुलन में कृषि की भूमिका को रेखांकित किया। किसानों की मुख्य समस्याएं सिंचाई और कीटनाशकों के प्रति बढ़ता प्रतिरोध रहीं। वैज्ञानिकों ने खरीफ सब्जी खेती, पर्यावरण दिवस की थीम, नर्सरी तैयारी, डायरेक्ट सीडेड राइस और कम्पोस्ट उत्पादन की तकनीकों पर चर्चा की।


डॉ. के.के. पांडे और डॉ. रामेश्वर सिंह की टीम ने विद्यापीठ ब्लॉक के बछाव और कुरहुआ गांव में कार्यक्रम किए। किसानों की मुख्य समस्याओं में भिंडी का माइट और लीफ कर्ल, लौकी में फल पीलापन, धान का स्मट, आलू का ब्लैक स्कर्फ और कॉमन स्कैब शामिल रहे। वैज्ञानिकों ने आइआइवीआर द्वारा विकसित रोग प्रतिरोधी किस्मों, खरीफ सब्ज़ी उत्पादन, डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर), ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग, एवं फेरोमोन ट्रैप जैसी प्रयोगशाला से खेत तक की तकनीकों पर चर्चा की। डायरेक्ट सीडेड राइस तकनीक से पानी की 25प्रतिशत बचत और श्रम लागत में कमी की जानकारी दी गई।

ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग तकनीक से सिंचाई की समस्या का समाधान प्रस्तुत किया गया। आइआइवीआर द्वारा विकसित रोग प्रतिरोधी और उच्च उत्पादन वाली सब्जी किस्मों की विशेषताओं की जानकारी दी गई और मार्च में भिंडी की अगेती खेती से अधिक आय की संभावनाओं पर चर्चा हुई। संस्थान के निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने बच्छाव गांव में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि “आइआइवीआर द्वारा सम्पादित किया जा रहा भारत सरकार का यह अभियान किसानों को केवल तकनीकी जानकारी देने का मंच नहीं, बल्कि समस्याओं के व्यवहारिक समाधान, हरित तकनीकों और टिकाऊ कृषि की ओर प्रेरित करने की ठोस पहल है।

