साधो, देखो जग बौराना...अस्सी घाट पर 'कविकुल काव्यार्चन' में गूंजे संत कबीर के दोहे




वाराणसी, भदैनी मिरर। संत परंपरा और रचना संस्कृति की गंगा-जमुनी धारा को संजोते हुए मंगलवार को अस्सी घाट पर 'सुबह-सुबह बनारस' के तहत "कविकुल काव्यार्चन" का आयोजन किया गया। महीने के तीसरे मंगलवार को होने वाले इस आयोजन में इस बार संत कबीर को समर्पित सत्र का आयोजन हुआ, जिसमें आमंत्रित कवियों और रचनाकारों ने संत कबीर की साखी, सबद, रमैनी और दोहों का पाठ कर श्रोताओं को कबीर के दर्शन से जोड़ने का प्रयास किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता काशी के वरिष्ठ साहित्यकार गणेश प्रसाद गंभीर ने की, जबकि संचालन की भूमिका में महेंद्र तिवारी 'अलंकार' रहे। आयोजन की शुरुआत डॉ. वात्सल्य श्रीवास्तव ने संत कबीर के दोहों के सधे हुए पाठ से की, जिन्होंने मानवीय मूल्यों और जीवन के सत्य को छोटे-छोटे दोहों के माध्यम से प्रस्तुत किया।

राजलक्ष्मी मिश्रा ने संत कबीर की प्रसिद्ध साखियों और सबद के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों पर तीखा कटाक्ष किया। उन्होंने कबीर का प्रसिद्ध सबद ‘साधो, देखो जग बौराना...’ प्रस्तुत कर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया।
इस आयोजन की एक खास बात यह रही कि हाईस्कूल की छात्रा प्रियांशी तिवारी ने भी कबीर के दुर्लभ दोहों का सुंदर पाठ किया। उनके सधे हुए उच्चारण और भावों की गहराई ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

अतिथि कवि वीरेंद्र प्रताप श्रीवास्तव 'करुण' (आजमगढ़) ने कबीर की प्रेरणा से उपजी अपनी रचनाएं सुनाईं। उनकी पंक्तियां "क्या घट जाता यदि तुम थोड़ा और सब्र कर लेते..." ने श्रोताओं को गहराई से छू लिया।
चेतन तिवारी, महेंद्र तिवारी 'अलंकार' और अंत में गणेश प्रसाद गंभीर ने भी संत कबीर के दोहों, ग़ज़लों और गीतों का पाठ कर कबीर की रचनाधारा को नई ऊंचाई दी। 'हमन है इश्क मस्ताना' और 'कहें री नलिनी तू कुम्हलानी' जैसे रचनाओं ने वातावरण को अध्यात्मिक रंग में रंग दिया।
कार्यक्रम के आरंभ में बीना त्रिपाठी ने सभी रचनाकारों का स्वागत किया। अंत में जगदीश्वरी चौबे ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
रचनाकारों को प्रमाण पत्र डाॅ. जयप्रकाश मिश्र, पं. सूर्यप्रकाश मिश्र, प्रताप शंकर दुबे, दमदार बनारसी, पं. सूर्यकांत त्रिपाठी, गिरीश पांडेय, डाॅ. अलका दुबे, विजयचंद्र त्रिपाठी, विकास विदिप्त एवं विजय शंकर उपाध्याय ने प्रदान किए।
इस आयोजन ने न सिर्फ संत कबीर की याद को जीवंत किया, बल्कि नई पीढ़ी को भी उनके विचारों से जोड़ा।

