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वाराणसी में रोहिंग्या-बांग्लादेशियों की जांच से मचा हड़कम्प 

जिले में बड़ी संख्या में है बांग्लादेशी, बन चुका है आधार और वोटर कार्ड, राशन कार्ड भी

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वोट बैंक की राजनीति ने घुसपैठ को दिया बढ़ावा, दशकों से यहां रह रहे बांग्लादेशी

वाराणसी, भदैनी मिरर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर पूरे प्रदेश में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ चलाए जा रहे विशेष अभियान के तहत वाराणसी में भी सर्च ऑपरेशन शुरू हो गया है। इससे हड़कम्प मच गया है। अब सोमवार को सिगरा थाना क्षेत्र के एक हाते में रह रहे संदिग्ध लोगों की पहचान सत्यापन के लिए एडीसीपी काशी जोन और एलआईयू अधिकारी शरवण टी. ने पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचकर पूछताछ की। इसके अलावा अन्य थानों की पुलिस भी अपने-अपने क्षेत्रों में इसकी जांच कर रही है। अबतक 500 से अधिक संदिग्ध बांग्लादेशी पाये जाने की जानकारी मिली है। हालांकि जिले में इससे कहीं ज्यादा बांग्लादेशी यहां रह रहे हैं। सूत्रों के अनुसार वर्षों से रह रहे बांग्लादेशी जांच को देखते हुए अपना ठिकाना बदलने लगे हैं। इस जांच को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि यहां हजारों बांग्लादेशी तीन-चार दशक से रहे हैं। पूछने पर अपने को कोलकाता निवासी बताते हैं और उनके आधार कार्ड, मतदाता परिचय पत्र, जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र भी बन चुके हैं। 

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Bangla deshi

पुलिस संदिग्ध बांग्लादेशियों के आवास, पहचान पत्रों की गहन जांच की। सिगरा क्षेत्र में जांच के दौरान पूछताछ में सभी लोगों से मिले दस्तावेजों में पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के आधार कार्ड मिले, जिनकी वैधता और सत्यता की जांच कराई जा रही है। एडीसीपी शरवण टी. ने बताया कि सभी संदिग्धों की जानकारी एकत्र की जा रही है और आवश्यक सत्यापन के बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में किसी भी प्रकार की अवैध घुसपैठ या फर्जी दस्तावेजों के आधार पर निवास करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। आपको बता दें कि बांग्लादेशियों की घुसपैठ दशकों से हो रही है। पहले वह कोलकाता, आसाम पहुंचते हैं। कुछ दिन समय बिताने के बाद रोजी-रोटी की तलाश में विभिन्न राज्यों और जिलों में प्रवेश करते हैं।

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शहर के लंका थाना क्ष के नगवा, अस्सी, ककरमत्ता, बजरडीहा, पटिया, जैतपुरा थाना क्षेत्र के पुराना पुल और आसपास, सरैया, मंडुवाडीह, कैंट, वाराणसी सिटी, काशी और मंडुवाडीह स्टेशनों के आसपास इनके ठिकाने हैं। दरअसल वोट बैंक की राजनीति के तहत लगभग सभी पाटियों ने इन्हें संरक्षण प्रदान किया। इनके वोटर कार्ड, आधार कार्ड आदि बनवाये जा चुके हैं। इसलिए अब यह अपने को पश्चिम बंगाल का मूल निवासी बताते हैं। इनके राशन कार्ड भी बन चुके हैं। हालांकि कोलकाता से भी लोगों का यहां आना हुआ है। लेकिन बांग्लादेश से आनेवाले अधिकतर लोगों के परिजन घरों में काम करने, कूड़ा बीनने और अब फूटपाथ पर दुकानें लगाने का काम कर रहे हैं। वर्षों से वह भारतीय नागरिक के बतौर यहां रह रहे हैं और सभी सरकारी सुविधाओं से सुसज्जित हो चुके हैं। वोटर लिस्ट में भी इनके नाम हैं। अब जबतक इनके बताये गये मूल पते का सत्यापन नही होगा स्थिति साफ नही हो सकेगी। 
 

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