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पं. हरिप्रसाद की बांसुरी से होगा श्रीसंकटमोचन संगीत समारोह का आगाज

दिल्ली के रोहित पवार के कथक से होगा समारोह की प्रथम निशा का समापन

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गायन, वादन और नृत्य के अनूठे संगम में भाग लेने पहुंचे देश-विदेश के श्रोता

मुम्बई के पंडित राहुल शर्मा संतूर वादन प्रस्तुत करेंगे

वाराणसी, भदैनी मिरर। वाराणसी में हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में हर साल होनेवाला विख्यात श्रीसंकटमोचन संगीत समारोह का आज बुधवार की देर शाम को आगाज हो जाएगा। इस बार इस समारोह का श्रीगणेश पद्मविभूषण पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरी वादन से होगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके भारतीय शास्त्रीय संगीत के विहंगम और अनोखे समारोह में 87 साल के पं. हरिप्रसादजी के साथ मुम्बई के तबला वादक आशीष राघवानी, बांसुरी पर मुम्बई के ही विवेक सोनार और सुश्री वैष्णवी जोशी संगत करेंगी। 
गायन, वादन और नृत्य के अनूठे संगम वाले इस समारोह की कई विशेषताओं में से एक यह भी हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की सरिता के साथ श्रद्धा और भक्ति सागर भी हिलोरे लेता रहता है। इस समारोह में पंडित हरिप्रसाद की प्रस्तुति के बाद बंगलुरू की श्रीमति जननी मुरली भरतनाट्सम की प्रस्तुति देंगी। इसके बाद मुम्बई के पंडित राहुल शर्मा संतूर वादन प्रस्तुत करेंगे और उनके साथ तबले पर संगत दिल्ली के पं. रामकुमार मिश्र करेंगे। संतूर वादन की इस मनोहारी प्रस्तुति के बाद हैदराबाद के डा. येल्ला वेंकटेश्वर अपने सहयोगी कालाकारों के साथ मृदंगम् पर अपना जलवा विखेरेंगे। इसके बाद हनुमत दरबार में एक बार बांसुरी की धुन श्रोताओं के कानों में मिठास घोलेंगी और बंगलुरू के पं. प्रवीण गोडखिण्डी बांसुरी पर अपना सुर साधेंगे। इनके साथ तबले पर इशान घोष संगत करेंगे। समारोह की छठीं प्रस्तुति में मुम्बई के पं. अजय पोहनकर का गायन होगा। इनके साथ तबले पर कोलकाता के पं. समर साहा, संवादिनी पर दिल्ली की पारोमिता मुखर्जी और सारंगी पर सुश्री गौरी बनर्जी इनका साथ देंगी। सातवीं प्रस्तुति वाराणसी के प्रसिद्ध सरोद वादक पं. विकास महाराज की होगी और इनके साथ सितार पर वाराणसी के ही विभाष महाराज और तबले पर प्रभाष महाराज संगत करेंगे। आठवीं और अंतिम प्रस्तुति दिल्ली के रोहित पवार के कथक से होगी। रोहित पवार के साथ तबले पर दिल्ली के जहीन खान, पखावज पर महावीर गंगानी और अतुल देवेश गायन और सारंगी पर सुश्री गौरी बनर्जी प्रस्तुति देंगी। 

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कला दीर्घा में भाग लेंगे 20 देशों कलाकार

इसके अलावा हर साल की तरह इस बार भी मंदिर परिसर के बगीचे में कला दीर्घा सजेगी। यहां करीब सौ चित्रों की प्रदर्शनी लग रही है। इस प्रदर्शनी में महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिसा, पंजाब के अलावा स्पेन, फ्रांस, इटली, नेपाल, कोरिया समेत 20 देशों के कलाकार भाग लेंगे। 

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संत तुलसीदास ने की थी मंदिर की स्थापना

माना जाता हैं कि इस मंदिर की स्थापना वही हुईं हैं जहां श्रीरामचरित मानस के रचयिता संत तुलसीदास को पहली बार हनुमानजी का स्वप्न आया था। इसके बाद संकट मोचन मंदिर की स्थापना संत तुलसीदासजी ने की थी। वे वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अवधी संस्करण रामचरितमानस के रचयिता हैं। संत तुलसी दास जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने बाह ( भुजाओं) के असहनीय पीड़ा अवस्था में संकट मोचनजी के समक्ष ‘हनुमान बाहुक’ की रचना की थी। हर मंगलवार और शनिवार को बड़ी संख्या में भक्तों का यहां तांता लगा रहता है। आम दिनों में भी भक्त दरबार में हाजिरी लगाने आते रहते हैं।

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पूर्व महंत अमरनाथ मिश्र ने रखी थी इस सांस्कृतिक परंपरा की नींव

102 वें संगीत समारोह की संकट मोचन मंदिर के पूर्व महंत अमरनाथ मिश्र ने नींव स्थानीय स्तर पर डाली थी। अब शताब्दी पर कर चुकी यह यात्रा बेमिसाल आयोजन बन गयी है। आज यह समोरोह सिर्फ अखिल भारतीय स्तर का संगीत समारोह न होकर एक सांस्कृतिक परम्परा बन गया है। शुरू-शुरू में इस आयोजन में पहले रामायण सम्मेलन होता फिर आखिरी दिन संगीत सम्मेलन. बाद में संगीत समारोह तीन रोज का हुआ. फिर चार, और अब सात रोज का। महंत अमरनाथ जी खुद बड़े पखावज वादक थे. उसके बाद के महंत पं. वीरभद्र मिश्र जी ने इसे जारी रखा. वे बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और विभगाध्यक्ष थे। बड़े पर्यावरणविद स्वच्छ गंगा अभियान के ध्वज वाहक थे. उनके बेटे वर्तमान मंहत विशम्भर नाथ मिश्र भी बीएचयू आईटी में प्रोफेसर हैं और पखावज पर सिद्धहस्त हैं. अब यह समारोह उन्हीं के हवाले है और परम्परा निर्बाध गति से चल रही है.

तब रो पड़े थे पंडित जसराज 

पहली बार बनारस से बाहर के कलाकार के तौर पर पद्मविभूषण पं. जसराज के बड़े भाई पं. मणिराम को यहां शास्त्रीय गायन के लिए बुलाया गया. 1966 में वायलिन वादक वीजी जोग। इस समारोह में आने वाले दूसरे बाहरी व्यक्तित्व बने। वीजी जोग के साथ सारंगी पर पं. राजन साजन के चाचा और गुरु पं. गोपाल मिश्र ने संगत की थी। उस जमाने में पं किशन महराज के तबला वादन से शुरू होनेवाला समारोह उनके गुरू कंठे महराज के तबले पर समाप्त हो जाता था। पं. जसराज हर साल यहां आते थे. संकटमोचन दरबार के प्रति उनकी इतनी गहरी आस्था थी कि कोविड के दौरान एक कार्यक्रम ऑनलाइन हुआ तो वे हनुमान दरबार में न उपस्थित हो पाने के कारण रो पड़े थे।

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यह प्रसिद्व कलाकार यहां लगा चुके हैं हाजिरी

मैहर में शारदा मां के परिसर के बाद यह इकलौता मंदिर है जहां मुस्लिम कलाकारों ने भी संगीत के जरिए अपने ईष्ट की आराधना की. पं ओंकार नाथ ठाकुर से लेकर भारतरत्न पंडित रविशंकर, पंडित भीमसेन जोशी, कुमार गंर्धव, पंडित बिरजू महराज, पद्मविभूषण पंडित जसराज, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, पं. महादेव मिश्र, पं. अनोखेलाल मिश्र, उस्ताद अमजद अली खां, सुनंदा पटनायक, पं. प्रताप महाराज, शिव कुमार शर्मा, गिरिजादेवी, सितारा देवी, पंडित किशन महराज, गोदई महाराज, कंठे महराज, पं. हनुमान प्रसाद मिश्र, ज्योतिन भट्टाचार्य, पं. शारदा सहाय, गुलाम अली, सोनू निगम, पंडित राजन साजन मिश्र, कविता कृष्ण्मूर्ति और अनूप जलोटा, पं. छन्नूलाल मिश्र आदि जैसे प्रसिद्ध कलाकार यहां अपनी प्रस्तुतियां देकर हनुमत दरबार में अपनी हाजिरी लगा चुके हैं। 
 

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