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पॉवर सेक्टर में निजी घरानों की मोनोपोली यूपी के उपभोक्ताओं के हित में नहीं 

बनारस में बिजलीकर्मियों का आंदोलन 353वें दिन जारी

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बिजली का निजीकरण किसी के हित मे नही, निजी कम्पनियों को होगा मुनाफा

यूपी में भी दोहराई जा रही दिल्ली और उड़ीसा जैसी गलती, रिस्ट्रक्चरिंग कर लागू की गई नई व्यवस्था

वाराणासी, भदैनी मिरर। यूपी में बिजली के निजीकरण के खिलाफ विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले 353वें दिन शनिवार को भी बनारस के बिजलकर्मियों का आंदोलन जारी रहा। इस दौरान बिजलकर्मियों ने कहा कि पावर सेक्टर में निजी घरानों की मोनोपोली किसी भी प्रकार उपभोक्ताओं के हित में नहीं है।  इसे हर हाल में रोका ही जाना चाहिए और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का एकतरफा निर्णय निरस्त किया जाना चाहिए। 

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संघर्ष समिति ने कहा कि बिजलीकर्मियों और अभियंताओं के प्रबल विरोध के बावजूद पॉवर कॉरपोरेशन प्रबन्धन ने निजीकरण के लिए सभी संवर्गो के हजारों पदों को समाप्त कर लेसा में आज से नई व्यवस्था लागू कर दी है। इसके दुष्परिणामों का सारा उत्तरदायित्व प्रबंधन का होगा। यह एक विफल प्रयोग है जिसे निहित स्वार्थवश प्रबंधन ने लागू कर दिया है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के निर्णय के सम्बंध में संघर्ष समिति के केन्द्रीय पदाधिकारियों ने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को सीएजी ऑडिट से मुक्त रखा है। निजी कंपनियों का सीएजी ऑडिट नहीं होता है। ऐसे में लाभ हानि का सही लेखा जोखा नहीं मिल पाता है और निजी कंपनियों को मिलने वाले मुनाफे का आम उपभोक्ताओं और कर्मचारियों को कोई लाभ नहीं मिल पाता। सीएजी ऑडिट न होने से निजी कंपनियां मनमाना खर्च दिखाकर इसका बोझ उपभोक्ताओं पर डालती हैं।

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संघर्ष समिति ने कहाकि उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण में भयंकर गलतियां दोहराई जा रही हैं जो दिल्ली, उड़ीसा और चंडीगढ़ के निजीकरण के समय की गई थी। इन्हीं गलतियों के चलते दिल्ली, उड़ीसा और चंडीगढ़ में अरबों खरबों रुपए की परिसंपत्तियों को निजी घरानों को कौड़ियों के मोल दे दिया गया था और आम उपभोक्ता ठगे से रह गये थे। समिति ने कहाकि निजी घरानों को सुधार के नाम पर विद्युत वितरण का दिल्ली, उड़ीसा और चंडीगढ़ का बड़ा नेटवर्क कौड़ियों के मोल दे दिया गया। इन तीनों प्रदेशों में सुधार का दावा करने वाली निजी कंपनियों ने आज तक यह नहीं बताया कि उन्होंने सुधार किया तो उसका लाभ उपभोक्ताओं को मिला क्यों नहीं? और उपभोक्ताओं की बिजली दरें क्यों नहीं कम हुई ? निजी कंपनियां मुनाफे में आ गई हैं तो दरें घटाने के बजाय उल्टे बढ़ाई क्यों जा रही है? ध्यान रहे कि दिल्ली और उड़ीसा में निजी कंपनियां उपभोक्ताओं की बिजली दर कम करने के बजाय बिजली दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव हर साल देती हैं। हाल ही में चंडीगढ़ शहर के निजीकरण के बाद निजी कंपनी ने 6 महीने के अंदर ही बिजली दरों में वृद्धि का प्रस्ताव नियामक आयोग को भेज दिया है। जबकि सरकारी विभाग रहते हुए चंडीगढ़ में पिछले साढ़े 6 वर्षों में बिजली की दरों में कोई वृद्धि नहीं की गई थी और फिर भी मुनाफा हो रहा था।

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कहाकि निजीकरण होने के बाद प्राइवेट कंपनियों का सीएजी ऑडिट नहीं होता। सीएजी ऑडिट न होने से वास्तविक लाइन हानियां कम होने का लाभ उपभोक्ताओं को ट्रांसफर नहीं हो पाता, उल्टे अनाप-शनाप खर्चे दिखाकर निजी कंपनियां उपभोक्ताओं पर बोझ डालती हैं। दिल्ली, उड़ीसा, चंडीगढ़ और आगरा के निजीकरण में कुछ बड़ी गलतियां की गई थीं जिसका बेजा लाभ निजी घरानों को मिला। उदाहरण के तौर पर निजीकरण करने हेतु ट्रांजैक्शन कंसलटेंट के चयन में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई। परिणाम स्वरूप कंसल्टेंट ने निजी घरानों से मिलीभगत में ऐसा आरएफपी डॉक्यूमेंट तैयार किया जो कुछ चुनिंदा निजी कंपनियों के हित में था।

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इसी प्रकार निजीकरण के पहले उपभोक्ताओं पर आउट स्टैंडिंग ड्यूज और परिसंपत्तियों का मूल्यांकन वास्तविक ड्यूज और मूल्यांकन से काफी कम कर आंकलित किया गया, जिससे सरकार को अरबों खरबों रुपए की क्षति हुई। बताया कि आगरा का उदाहरण सामने है, जहां टोरेंट पावर कंपनी ने 2200 करोड रुपए के उपभोक्ताओं पर आउट स्टैंडिंग ड्यूज को आज तक पॉवर कारपोरेशन को नहीं दिया। निजीकरण के पहले दिल्ली, आगरा और उड़ीसा में एटी एंड सी हानियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया। इसका लाभ सीधे सीधे निजी घरानों को मिला और सरकार को अरबों खरबों रुपए का चूना लगा। सभा को आरके वाही, ओपी सिंह, जिउतलाल, अंकुर पाण्डेय, हेमन्त श्रीवास्तव, अभिषेक सिंह, चंद्रशेखर कुमार, पंकज यादव, एसके सरोज, योगेंद्र कुमार, विशाल कुमार, रामअशीष कुमार, बृजेश कुमार, नन्हेलाल, मो. कलीम, रोहित कुमार आदि ने संबोधित किया।

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