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काशी की विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला आज, जीवंत हो उठेगी सैकड़ों वर्ष पुरानी परम्परा

संत गोस्वामी तुलसी दासजी ने 500 वर्ष पहले शुरू कराई थी यह लीला

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बड़ी संख्या में श्रद्धालु होते हैं लीला में शामिल, पुलिस और प्रशासनिक इंतजाम पूरे

वाराणसी, भदैनी मिरर। काशी के तुलसी घाट पर महान संत गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस की रचना की आज उसी घाट पर सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा फिर जीवंत हो उठेगी। विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला आज शाम को होगी। धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक में काशी में सभी देवी-देवताओं का शिव की नगरी में आगमन होता है। इस लीला के हजारों लीला प्रेमी साक्षी बनेंगे। मुख्य रूप से चंद मिनटों की यह लीला का दृश्य अनूठा होता है। काशी के लक्खा मेलों में शुमार नाग नथैया लीला और नाटी इमली के भरत मिलाप की लीला की विशेषता यह है कि मुख्य लीला तो चंद मिनटों की होती है। लेकिन उतनी ही देर में ऐसा दृश्य उपस्थित होता है जैसे पुरातन काल के उस मंजर का लोगों को अहसास दिला जाता है। वैसे इस लीला के लिए पुलिस और प्रशासनिक इंतजाम किये गये हैं। चप्पे-चप्पे पर फोर्स की तैनातियों का दौर शुरू हो चुका है।

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अस्सी घाट के बगल में तुलसी घाट पर होने वाली नाग नथैया लीला की तैयारियां पूरी हो चुकी है। यह परंपरा गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा लगभग 500 वर्ष पूर्व प्रारंभ कराई गई थी। आज भी उसी निष्ठा के साथ इसका निर्वहन किया जा रहा है। इस लीला को देखने के लिए विभिन्न प्रांतों के साथ ही विदेशों से भी श्रद्धालु काशी पहुंचते हैं। लीला में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कालिया नाग के फन पर वंशी बजाते हुए दृश्य का मनोरम मंचन किया जाता है। काशी के धार्मिक व सांस्कृतिक इतिहास में यह आयोजन अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। इस लीला में पूर्व काशी नरेश परिवार की उपस्थिति होती है। इस वर्ष भी कुंवर अनंत नारायण सिंह लीला में परम्परागत ढंग से शामिल होंगे। 

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यह आयोजन अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास की परंपरा के अनुरूप संपन्न कराया जाता है। संकट मोचन मंदिर परिवार से जुड़े विद्वान, कला प्रेमी और संस्कृति संरक्षक प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र लीला संचालन और संपूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालते हैं। गंगा के किनारे मंच निर्माण, सुरक्षा इंतजाम और श्रद्धालुओं के आवागमन की व्यवस्था को भी अंतिम रूप दिया जा चुका है। आपको बता दें कि नागनथैया लीला केवल एक मंचन नहीं, बल्कि लोक आस्था, काशी की परंपरा और आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक है। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही यह लीला काशी के धार्मिक कैलेंडर का महत्वपूर्ण अध्याय है। शाम को ठीक गोधुलि बेला में यह लीला होती है। जैसे ही बाल सखाओं संग गेंद खेलने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर यमुना में छलांग लगाएंगे और उसके चंद मिनट बाद कालिया नाग के फन पर वंशी बजाते प्रकट होंगे पूरा वातावरण काशी के परम्परागत उद्घोष ‘हर-हर महादेव‘, ‘जय कन्हैया लाल की‘ से गूंज उठेगा।

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