कार्तिक पूर्णिमा पर शिवपुर में गूंजा पारंपरिक दंगल: 200 से अधिक पहलवानों ने दिखाया दम, बिरहा दंगल ने बांधा समां
शिवपुर रामलीला मैदान में दशकों पुरानी परंपरा के तहत हुआ विराट कुश्ती दंगल, हरियाणा-पूर्वांचल के नामी पहलवानों ने लिया हिस्सा, महिला पहलवानों की भागीदारी बढ़ाने की घोषणा

वाराणसी, भदैनी मिरर। कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर वाराणसी के शिवपुर रामलीला मैदान में मंगलवार को पारंपरिक विराट कुश्ती दंगल का भव्य आयोजन हुआ। यह आयोजन न केवल खेल भावना का प्रतीक रहा, बल्कि काशी की सांस्कृतिक और लोक परंपरा का जीवंत उत्सव भी बना। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चले इस आयोजन में 200 से अधिक पहलवानों ने अपने दमखम का प्रदर्शन किया।



मिट्टी के अखाड़े में हर दांव और पलटा पर तालियों की गूंज के साथ दर्शक झूम उठे। दंगल में हरियाणा, दिल्ली, गोरखपुर, मेरठ और पूर्वांचल के नामी पहलवानों ने हिस्सा लिया। मुकाबलों में पारंपरिक कुश्ती की झलक के साथ युवाओं की फुर्ती और जुनून देखने लायक रहा। कई राष्ट्रीय स्तर के पहलवानों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को और प्रतिष्ठित बना दिया।

कमेटी अध्यक्ष रामचंद्र पहलवान (रेलवे) ने कहा कि अगले वर्ष दंगल को और बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाएगा। उन्होंने विशेष रूप से महिला पहलवानों की भागीदारी बढ़ाने की घोषणा की और कहा कि -“प्रधानमंत्री के ‘नारी सशक्तिकरण अभियान’ से प्रेरित होकर हम महिला कुश्ती को बढ़ावा देंगे। अगली बार महिला वर्ग के मुकाबले भी दंगल का हिस्सा होंगे।”

दंगल के समापन पर विराट बिरहा दंगल का आयोजन हुआ, जिसमें भभुआ (बिहार) से प्रसिद्ध बिरहा गायक सुधीर लाल यादव और प्रयागराज की गायिका सुमित्रानंदनी ने लोकगीतों और नृत्य की मनमोहक प्रस्तुतियां दीं। पूरे मैदान में तालियों की गूंज और जयघोष के साथ दर्शकों ने कलाकारों का उत्साह बढ़ाया।
कार्यक्रम के दौरान विजेता पहलवानों को नकद पुरस्कार, ट्रॉफी, शाल और सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस मौके पर जीतू यादव, रामप्रसाद यादव, काशीनाथ यादव, मीत्तू यादव, नन्हे यादव, रामाश्रय मास्टर साहब, रविप्रकाश बाजपेई और आनंद तिवारी सहित दंगल कमेटी के सदस्य मौजूद रहे।
शिवपुर थाना प्रभारी और पुलिस प्रशासन की सतर्कता से पूरा आयोजन शांतिपूर्वक सम्पन्न हुआ। मैदान की सुरक्षा, दर्शक व्यवस्था और यातायात नियंत्रण में प्रशासन ने बेहतरीन भूमिका निभाई।
यह आयोजन केवल कुश्ती मुकाबलों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि स्थानीय एकता, खेल संस्कृति और परंपरा का प्रतीक बना। हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित होने वाला यह दंगल अब पूरे पूर्वांचल में खेल और संस्कृति का महोत्सव बन चुका है।


