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यादगार बन गई पं. हरिप्रसाद की बांसुरी और महंत विश्वम्भरनाथ के पखावज की युगलबंदी

पहले ही दिन 102वें श्रीसंकटमोचन संगीत समारोह इतिहास में जुड़ा नया अध्याय

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पं. हरिप्रसाद चौरसिया के विशेष अनुरोध पर महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने सम्भाली पखावज की कमान

यादगार लम्हाः बांसुरी के सुर और पखावज वादन से संगीत समारोह का आगाज 

वाराणसी, भदैनी मिरर। श्रीसंकट मोचन संगीत समारोह के 102वें संस्करण का बुधवार को विधिवत आगाज 87 वर्षीय पद्मविभूषण पं. हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी की तान और मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र के पखावज की युगलबंदी से हुआ। इनके साथ साथ बांसुरी वादन पर विवेक सोनार और वैष्णवी जोशी साथ दिया। तबले पर संगत आशीष राघवानी ने की। इसी के साथ पं. हरिप्रसाद और प्रो. विश्वम्भनाथ मिश्र की युगलबंदी संकटमोचन संगीत समारोह का इतिहास बन गई। 

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पहली प्रस्तुति लेकर मंचासीन हुए पद्मविभूषण पं. हरिप्रसाद चौरसिया के साथ संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने यादगार पखावज वादन किया। पं. हरिप्रसाद चौरसिया के विशेष अनुरोध पर महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र जैसे ही मंच पर आये तो हनुमत दरबार में उपस्थित रसिक श्रोताओं के चेहरे खिल उठे और पूरा परिसर हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान हो गया। इसके साथ ही राग विहाग के सुर लगते भारतीय संगीत के मर्मज्ञ पं. हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरी की सुरीली लयकारियों मचलने लगीं और हनुमद् जयंती के उपलक्ष्य में होनेवाले इस अंतरराष्ट्रीय समारोह में चार चांद लग गया। 

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जननी मुरली ने बजरंगबली के चरणों में दी के भरतनाट्यम की भावपूर्ण प्रस्तुति 

इसके बाद प्रथम निशा की दूसरी प्रस्तुति लेकर मंचासीन हुई नृत्यांगना जननी मुरली ने भरतनाट्यम प्रस्तुति कर श्रोताओं पर अमिट छाप छोड़ दी। बंगलुरु की जननी ने गंगा स्तुति से नृत्य का आरंभ किया। मीराबाई के भजन ‘हरि तुम हरो जन की पीर’ पर सम्मोहनकारी नृत्य की प्रस्तुति दी। इसके बाद उन्होंने बजरंगबली के श्रीचरणों में भावपूर्ण नृत्य अर्पित किया। जननी मुरली ने संत पुरंदरदास की रचना पर आकर्षक नृत्य करके दर्शकों से खूब प्रशंसा बटोरी। नृत्य का समापन उन्होंने महाकाल को समर्पित रचना से किया। उन्होंने पहली बार हनुमत दरबार में हाजिरी लगाई है। 

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पं. राहुल शर्मा के संतूर ने छोड़ी अमिट छाप

तीसरा कार्यक्रम पं. राहुल शर्मा के नाम रहा। उन्होंने संतूर वादन की यादगार प्रस्तुति दी। उन्होंने राग झिंझोटी में आलाप, जोड़ और झाला के वादन से श्रोताओं को अभिभूत कर दिया। आरोह- अवरोह के दौरान उनके सधे हाथों का संचालन अपने आप में बेजोड़ रहा। राग के स्वरूप के अनुकूल वादन ने श्रोताओं को राग के स्वरूप की अनुभूति कराई। इसके बाद उन्होंने रूपक ताल में एक और तीन ताल की दो रचनाओं का वादन किया। लंबे अंतराल पर दरबार में पं. राहुल शर्मा ने पहाड़ी धुन के वादन से श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। उनके साथ तबला पर बनारस घराने के पं. रामकुमार मिश्र ने अपनी प्रभावपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई। इसी के साथ समारोह में दिग्गज कलाकारों की प्रस्तुतियों का दौर जारी रहा। संगीत मर्मज्ञ और रसिक श्रोता शास्त्रीय संगीत के सागर की गहाई में डूबते-उतराते रहे।

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