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हयात ए मुख्तसर में हम दिल हार बैठे...अस्सी घाट पर बहुभाषी काव्यार्चन, भोजपुरी, हिंदी, बांग्ला और उर्दू रचनाओं ने बांधा समा

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वाराणसी, भदैनी मिरर। अस्सी घाट पर मंगलवार को 'सुबह-ए-बनारस आनंद कानन' की ओर से बहुभाषी काव्यार्चन का आयोजन किया गया। यह विशेष सत्र पंडित धर्मशील चतुर्वेदी को समर्पित रहा, जिसमें भोजपुरी, हिंदी, बांग्ला और उर्दू भाषाओं की रचनाओं का सजीव पाठ हुआ। इस पूरे आयोजन की विशेष बात यह रही कि मंच संचालन से लेकर काव्य पाठ तक की कमान पूरी तरह से महिलाओं ने संभाली।

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कार्यक्रम की शुरुआत कवयित्री ऋतु दीक्षित ने भोजपुरी कविता से की, जिसमें उन्होंने नारी की खेत-खलिहान से लेकर देश सेवा तक की भूमिका को भावनात्मक तरीके से प्रस्तुत किया। इसके बाद शिक्षिका प्रियंका सिंह ने हिंदी में प्रेम पर आधारित कविता "जब जब भी मैंने प्यार लिखा, तेरा ही नाम ओ यार लिखा..." सुनाकर श्रोताओं का दिल जीत लिया।

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बांग्ला भाषा का प्रतिनिधित्व करते हुए झरना मुखर्जी ने रवींद्रनाथ ठाकुर की कालजयी रचना 'एकला चलो रे' का पाठ किया और फिर अपनी मौलिक बांग्ला रचनाओं से सभी को भावविभोर किया।

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संचालन कर रहीं प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत' ने उर्दू ग़ज़लों से माहौल को संवेदनशील बना दिया। उनकी पंक्तियाँ "हयात ए मुख्तसर में हम दिल हार बैठे हैं" और "एक सुकून है जो दिल पर तारी है, अपनी आंखों में इंतजारी है" ने भावों की गहराई को छू लिया।

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कार्यक्रम के दौरान काव्यार्चन परिवार के वरिष्ठ सदस्य प्रताप शंकर दुबे को हिंदी साहित्य अकादमी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य चुने जाने पर सम्मानित किया गया।

रचनाकारों का स्वागत राजलक्ष्मी मिश्रा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ कवि सिद्धनाथ शर्मा 'सिद्ध' ने किया। कवयित्रियों को जगदीश्वरी चौबे, बीना त्रिपाठी, डॉ. जयप्रकाश मिश्रा और अरुण द्विवेदी ने प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।

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