ध्रुपद मेला चौथी निशा : सुरों की बरसी आनंद वर्षा,पखावज और सुरबहार की प्रस्तुति ने श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध




वाराणसी। अंतरराष्ट्रीय ध्रुपद मेले की चौथी निशा में कुल दस प्रस्तुतियां हुईं, जिनमें सभी कलाकारों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। खासतौर पर पखावज वादन और सुरबहार की प्रस्तुति ने संगीत प्रेमियों को अपार आनंद की अनुभूति कराई।
दरभंगा घराने के पं. राजकुमार झा का पखावज वादन
कार्यक्रम का आरंभ दरभंगा घराने के पं. राजकुमार झा के स्वतंत्र पखावज वादन से हुआ। उन्होंने चौताल से प्रस्तुति की शुरुआत की और शूल ताल में विविध लयकारियों से श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया। इस दौरान दिल्ली की सारंगी वादक गौरी बनर्जी ने उनकी संगत कर प्रस्तुति को और अधिक प्रभावशाली बना दिया।

ग्रीस के नेकटारियो ने सुरबहार से बिखेरा आनंद रस
दूसरी प्रस्तुति ग्रीस के कलाकार नेकटारियो द्वारा सुरबहार वादन की रही। उन्होंने राग चंद्रकौंस में आलाप प्रस्तुत कर अपनी संगीत साधना की उत्कृष्ट झलक दिखाई। उनके सधे हुए स्वरों ने विशुद्ध शास्त्रीय संगीत की गहराई को दर्शाया। वादन का समापन उन्होंने चौताल में निबद्ध रचना से किया, जिसमें पखावज संगत शोमन ने की।

डॉ. रिंकू लाम्बा का ध्रुपद गायन
इसके बाद बेंगलुरु की डॉ. रिंकू लाम्बा ने अपनी मधुर ध्रुपद गायकी से समां बांधा। उन्होंने राग चंद्रकौंस में आलाप से शुरुआत की और गायन के चारों विभाग—स्थाई, अंतरा, संचारी और आभोग—में राग के अनुरूप प्रस्तुति दी। अंत में चौताल में निबद्ध रचना "निरंजन निराकार" से अपने गायन को विराम दिया। उनकी संगत पखावज पर अभिजीत सरकार, तथा तानपुरा पर ब्रिजिट और जॉन ने की।

सरोद वादन और अन्य प्रस्तुतियां
दिल्ली के सरोद वादक प्रभात कुमार ने अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। वहीं, दरभंगा घराने के पं. प्रशांत और पं. निशांत मलिक ने अपने ध्रुपद गायन से कार्यक्रम को और भव्य बना दिया।
तुलसीघाट पर आयोजित इस ध्रुपद मेले में पद्मश्री राजेश्वर आचार्य, कुंवर अनंतनारायण सिंह और संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभरनाथ विशेष रूप से उपस्थित रहे।
इस संगीतमयी रात का संचालन डॉ. प्रीतेश आचार्य और जगदीश्वरी चौबे ने किया, जिन्होंने पूरे कार्यक्रम को सहजता से आगे बढ़ाया। संगीत की इस अद्भुत निशा ने शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के दिलों में एक अविस्मरणीय छाप छोड़ी।

