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लोहा के सोना बना देला जइसे पत्थर पारस… सुबह ए बनारस के मंच पर सजी कवियों की महफिल, रचनाओं से श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध

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लोहा के सोना बना देला जइसे पत्थर पारस… सुबह ए बनारस के मंच पर सजी कवियों की महफिल, रचनाओं से श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध
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वाराणसी। सुबह ए बनारस के मंच पर हर मंगलवार को आयोजित होने वाला काव्यार्चन कवि सम्मेलन इस सप्ताह भी सफलता के साथ संपन्न हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत काव्य मंच पर कवि अलख निरंजन द्वारा सरस्वती वंदना के साथ की गई। उन्होंने अपनी भोजपुरी कविता "लोहा के सोना बनादेला जइसे पत्थर पारस, वइसे सब शहऱन में खूबसूरत बा इ आपन बनारस" के माध्यम से काशी का सुंदर चित्रण किया।

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लोहा के सोना बना देला जइसे पत्थर पारस… सुबह ए बनारस के मंच पर सजी कवियों की महफिल, रचनाओं से श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध

व्यंग्य कवि डॉ. विंध्याचल पांडेय के काव्य ने श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध

इसके बाद, प्रसिद्ध व्यंग्य कवि डॉ. विंध्याचल पांडेय सगुन ने अपनी रचना प्रस्तुत की - "दुर्व्यवस्था में व्यवस्था देखिए, आप बस अपनी अवस्था देखिए", जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर गई।

महाकुंभ पर रूद्रनाथ त्रिपाठी की रचना

कार्यक्रम का संचालन कर रहे रूद्रनाथ त्रिपाठी पुंज ने महाकुंभ पर अपनी रचना प्रस्तुत की - "अमृत की बूंदों में डुबकी जो लगाया, धुल गया पाप सब जीवन का कमाया, कुंभ आ गया, महाकुंभ आ गया", जो श्रद्धा और समर्पण की भावना से ओत-प्रोत थी।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही कवयित्री बीना त्रिपाठी ने अपनी रचना "दौर कुछ ऐसा चला, खौफ खाने लगे हैं। मुझे चहकते देख वो गम खाने लगे हैं" सुनाकर दर्शकों को प्रभावित किया।

स्मृति चिन्ह एवं प्रमाण पत्र वितरण

इस अवसर पर रचनाकारों का स्वागत डॉ. नागेश शांडिल्य ने किया, और कार्यक्रम के समापन पर रचनाकारों को प्रमाण पत्र लोकभूषण साहित्यकार डॉ. जय प्रकाश मिश्र, प्रेमनारायण सिंह, प्रभुनाथ दाढ़ी और परमहंस तिवारी ने प्रदान किए।

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आभार व्यक्त करते हुए महेंद्र अलंकार ने सभी का धन्यवाद किया। इस कार्यक्रम में रामेश्वर तिवारी, ए.के. चौधरी, सूर्य कान्त त्रिपाठी, बालेश्वर तिवारी, निधि राज समेत अन्य कई गणमान्य लोग और श्रोता उपस्थित रहे।

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