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बीएचयू : ‘ला लेसोन’ नाटक में दिखा स्वतंत्र चेतना, वैचारिक बहुलता और स्वायत्तता को नकारने का संकट 

रोमानियाई-फ्रेंच नाटककार यूजिन आयनेस्को द्वारा लिखित नाटक ‘ला लेसोन’ का नरेंद्र जैन द्वारा हिन्दी में अनुवादित ‘पाठ’ शीर्षक नाटक हुआ का मंचन 

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हिंसा, चेतना से जड़ता की ओर ले जाने वाली शिक्षा व्यवस्था को प्रभावी ढंग से उठाया
 

वाराणसी, भदैनी मिरर। काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र, अन्तर-सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र एवं हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में रोमानियाई-फ्रेंच नाटककार यूजिन आयनेस्को द्वारा लिखित एकांकी नाटक ‘ला लेसोन’ (द लेसन) का नरेंद्र जैन द्वारा हिन्दी में अनुवादित ‘पाठ’ शीर्षक नाटक का मंचन हुआ। यह नाटक मनुष्य की स्वतंत्र चेतना और वैचारिक बहुलता और स्वायत्तता को नकारने के संकट को उजागर करता है। जब एक बेहतर समाज बनाने के प्रयास निष्प्रभावी होने लगते हैं, तब हमारे अंदर व्यर्थता का बोध भी बढ़ने लगता है। यहां तक कि शब्दों और अवधारणाओं का अर्थ भी बेमानी हो जाता है। 

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नाटक में ’चाकू’ शाब्दिक हिंसा का प्रतीक 

इस नाटक के जरिए निरर्थकता बोध स्वतःस्फूर्तता के स्थान पर यांत्रिकता, बौद्धिक आतंक, मनुष्य के जीवन और उसकी सोच पर नियंत्रण, अपने से भिन्न सोच वाले व्यक्तियों के प्रति हिंसा, चेतना से जड़ता की ओर ले जाने वाली शिक्षा व्यवस्था इत्यादि मुद्दों को नाटक द्वारा प्रभावी ढंग से उठाया गया। इस विसंगत नाटक में ’चाकू’ शाब्दिक हिंसा का प्रतीक है। इसमें प्रोफेसर और छात्रा के युग्म को बार-बार दोहराकर उस दुर्निवार चक्र को प्रस्तुत किया गया है, जिससे निकास का कोई आसान रास्ता नहीं है। 

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दिखी प्रोफेसर और छात्रा के बीच संवादहीनता

अध्ययन-अध्यापन ज्ञान के आदान प्रदान का माध्यम है और जब तक ’दो और दो चार नहीं पांच या सात भी हो सकते हैं’ जैसे विचारों के लिए स्पेस तब तक नहीं है, जब तक शिक्षण के नाम पर सिर्फ स्मरण शक्ति का परीक्षण होगा, नवता या नए विचार का नहीं जिसे इसमें दर्शाया गया है। ‘पाठ’ नाटक में प्रोफेसर और छात्रा के बीच संवादहीनता, शब्दों के निश्चित अर्थ निर्धारण से उत्पन्न तनाव, असंवेदनशीलता और आक्रामकता अंततः छात्रा को जड़ता की ओर धकेल कर खत्म कर देने वाली परिणति को दर्शाया गया है। 

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वैचारिक दुनिया में स्पेस की तलाश करता है नाटक

यह नाटक मानवीय जिजीविषा के विरुद्ध सर्वसत्तावादी ताकतों के प्रभुत्व को दर्शाता है तथा वैचारिक दुनिया में स्पेस की तलाश करता है। इस नाटक का निर्देशन हिन्दी विभाग की प्रो. आभा गुप्ता ठाकुर ने किया। इसमें प्रोफेसर के रूप में राहुल सहाय, अंकित मिश्रा, अंकित मौर्या ने एवं विद्यार्थियों के रूप में विदिशा चित्रवंश, यशस्वी पांडे, खुशबू कुमारी ने तथा नौकरानी मैरी के रूप में प्रियांशी तिवारी ने प्रभावी एवं भावपूर्ण भूमिका अदा की। नाटक में लाइट, मेकअप, म्यूजिक एवं अन्य सहयोग राकेश बुनकर, राजा कुमार, विकास यादव, रजत यादव, डॉ. प्रीति विश्वकर्मा ने किया। नाटक आरंभ होने के पूर्व मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के समन्वयक प्रो. संजय कुमार ने कलाकारों एवं दर्शकों का स्वागत किया। नाटक के पश्चात अन्तर-सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र समन्वयक प्रो. राजकुमार, प्रख्यात फ़िल्मकार डॉ. गौतम चटर्जी, प्रो. आभा गुप्ता ठाकुर, डॉ. संदीप पांडे, डॉ. प्रीति विश्वकर्मा ने नाटक के विभिन्न पहलुओं पर सामूहिक चर्चा की। धन्यवाद ज्ञापन नाटक की निर्देशिका प्रो. आभा गुप्ता ठाकुर ने किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से विश्वविद्यालय के सलाहकार प्रो. कमलशील, प्रो. अर्चना कुमार, प्रो. वसिष्ठ द्विवेदी, प्रो. बलिराज पाण्डेय, प्रो. प्रभाकर सिंह, प्रो. रंजनाशील, प्रो. शशिकला त्रिपाठी, प्रो. नीरज खरे, डॉ. अशोक कुमार ज्योति, डॉ. राजीव वर्मा, डॉ. धर्मजंग, डॉ. किंग्सन पटेल, डॉ. प्रियंका सोनकर, डॉ. उषा त्रिपाठी, डॉ. रमेश लाल, अरविंद पाल एवं शोधार्थीगण अनन्या, ललित, नेहा, रंजीत, दिव्यान्शी, कंचन, रिमी समेत बड़ी संख्या में विद्यार्थी रहे।                           
 

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