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बीएचयू हिंदी विभाग में ‘श्रीप्रकाश शुक्ल–चुनी हुई रचनाएं’ का लोकार्पण, साहित्यिक संवाद में उभरी रचनाकर्म की विविधता

प्रो. सुरेंद्र प्रताप ने कहा – श्रीप्रकाश शुक्ल के रचनाकर्म का केन्द्रीय आधार है संवादधर्मिता।

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आलोचक कमलेश वर्मा ने किया संपादन, 16 पुस्तकों से चुनी गईं प्रतिनिधि रचनाएं।

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकारों और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं की रही उपस्थिति।

वाराणसी,भदैनी मिरर।  बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के हिंदी विभाग स्थित आचार्य रामचंद्र शुक्ल सभागार में प्रतिष्ठित कवि, आलोचक और गद्यकार प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल की पुस्तक ‘श्रीप्रकाश शुक्ल–चुनी हुई रचनाएं’ का लोकार्पण सह परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित हुआ। यह पुस्तक उनकी अब तक प्रकाशित 16 पुस्तकों से आलोचक एवं कोशकार प्रो. कमलेश वर्मा द्वारा चयनित रचनाओं का संकलन है।

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संवादधर्मिता है रचनाकर्म का आधार

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. सुरेंद्र प्रताप ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल के रचनाकर्म में हिंदी साहित्य की तमाम समृद्ध परंपराएं झलकती हैं। उनका लेखन संवादधर्मिता पर आधारित है और संपादक कमलेश वर्मा ने इस विशेषता को कुशलता से उभारा है।

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मुख्य वक्ता प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि लिखना बड़ा हुनर है, लेकिन संपादन उससे भी बड़ा हुनर है। उन्होंने कहा कि कमलेश वर्मा ने समय-क्रम में रचनाओं का चयन कर श्रीप्रकाश शुक्ल की परिपक्वता को सामने रखा है।

साफगोई और विविधता से भरा रचनाकर्म

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी ने कहा कि शुक्ल की रचनाओं में कलात्मकता की बजाय साफगोई ज्यादा है, खासकर उनके संस्मरणों में। गद्य में वे और भी खुलकर सामने आते हैं।

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लेखक का वक्तव्य

लेखक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने संपादक के प्रति आभार जताते हुए कहा कि यह संचयन नहीं बल्कि चयन है। उन्होंने अपने लेखन के दो मुख्य बिंदु – नवाचारिता और प्रश्नाकुलता को रेखांकित किया और कहा कि रचना प्रक्रिया कभी पूर्ण नहीं होती, उसमें कुछ और रचने की चाह हमेशा बनी रहती है।

पुस्तक के संपादक प्रो. कमलेश वर्मा ने कहा कि उन्होंने शुक्ल के रचनावृत्त के हर पहलू को सामने लाने की कोशिश की है। डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा और डॉ. विंध्याचल यादव सहित अन्य वक्ताओं ने भी शुक्ल के रचनाकर्म की साहित्यिक विविधता और प्रभाव को रेखांकित किया।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. विंध्याचल यादव ने किया, जबकि स्वागत डॉ. राजकुमार मीणा और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रविशंकर सोनकर ने किया। कुलगीत की प्रस्तुति आदित्य और अपराजिता ने दी। इस अवसर पर प्रो. कृष्णमोहन, प्रो. नीरज खरे, डॉ. विवेक सिंह, डॉ. अमित पांडेय, डॉ. धीरेंद्र चौबे सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद रहीं।
 

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