बनारस लिट फेस्ट : जहां 'मेरा-तेरा' समाप्त, वहीं सत्य की प्राप्ति– कैलाश सत्यार्थी




वाराणसी। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने शुक्रवार को बनारस लिटरेरी फेस्टिवल में एक संवाद सत्र के दौरान अपने विचार साझा किए। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा,"मैं सत्य का विद्यार्थी हूं और इसकी तलाश में रहता हूं। स्वामी दयानंद से प्रभावित होकर ही मैंने अपने नाम में 'सत्यार्थी' जोड़ा। सत्य वहीं शुरू होता है, जहां शब्दों की सीमा समाप्त हो जाती है। मैंने अपने जीवन में कभी ऐसा कोई शब्द नहीं बोला जिसे स्वयं न जिया हो।

गांधी के विचारों से मिली प्रेरणा
कैलाश सत्यार्थी ने बताया कि जब वह 15 वर्ष के थे, तब उन्होंने समाज में छुआछूत की समस्या को जाना और इससे लड़ने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा,"महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर मैंने समाज में समानता लाने की कोशिश की। मैंने सभी जाति-धर्म के लोगों को अपने घर आमंत्रित किया, लेकिन कोई नहीं आया। तब मैंने अपने मित्र के साथ एक राजनीतिक नेता से संपर्क किया, जिन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर 'हाईकमान' से बात होगी। उस समय मैंने पहली बार यह शब्द सुना था।"

जहां 'मेरा-तेरा' समाप्त, वहीं सत्य की प्राप्ति"
सत्यार्थी ने अद्वैतवाद पर जोर देते हुए कहा, "जब 'मेरा-तेरा' का भाव खत्म होता है, तभी सत्य की प्राप्ति होती है। पूरी दुनिया एक परिवार है। यदि समाज में बंटवारा और विभाजन समाप्त हो जाए, तो शांति और सत्य की स्थापना संभव है।"

'दियासलाई' क्यों बनी आत्मकथा का शीर्षक?
जब उनसे पूछा गया कि उनकी आत्मकथा का शीर्षक 'दियासलाई' क्यों रखा गया, तो उन्होंने कहा, "दियासलाई अपने अस्तित्व की परवाह किए बिना दीपक या मोमबत्ती को जलाती है। उसकी रोशनी से लाखों दीपक रोशन होते हैं, लेकिन खुद को कोई याद नहीं रखता। यह आत्मोत्सर्ग और प्रकाश फैलाने का प्रतीक है।"
नोबेल पुरस्कार की घोषणा पर प्रतिक्रिया
सत्यार्थी ने बताया कि जब उनके नाम पर नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा हुई, तो कई दिनों तक उन्हें इस पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा,"दुनिया में शांति तभी संभव है जब बच्चों को उनका बचपन, शिक्षा और आगे बढ़ने की आज़ादी मिले। आज की गलाकाट प्रतियोगिता समाज में कट्टरता को बढ़ावा दे रही है, जिससे एक व्यक्ति दूसरे को और एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को पीछे करने में लगा है। ऐसे में शांति की स्थापना मुश्किल हो जाती है।"
"समस्या और समाधान के बीच की खाई को पाटना जरूरी"
उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में समस्या झेलने वालों और समस्या सुलझाने वालों के बीच गहरी खाई बन चुकी है। जब तक यह दूरी खत्म नहीं होगी, तब तक सच्ची शांति स्थापित नहीं हो सकती।

