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काशी विश्वनाथ मंदिर में रात्रि भोग, शृंगार व आरती का काम करेंगे आचार्य, हाईकोर्ट ने हटाने का आदेश किया रद   

मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने आचार्य को हटाने के आदेश किया था जारी

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60 वर्ष से अधिक उम्र, सेवा विस्तार न देने का तर्क देकर डा. देवी प्रसाद को हटाया गया था

वाराणसी, भदैनी मिरर। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में रात्रि भोग, शृंगार और आरती करने वाले आचार्य डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। अदालत ने मुख्य कार्यपालक अधिकारी की ओर से आचार्य को हटाने के आदेश को रद्द कर दिया है। यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी की याचिका का निस्तारण करते हुए निर्देश दिया कि याची को बिना किसी मानदेय के सुगमतापूर्वक शृंगार, आरती और पूजन करने की अनुमति दी जाय।

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आपको बता दें कि डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी की नियुक्ति काशी विद्वत परिषद की संस्तुति पर 13 जनवरी 1994 को की गई थी। उन पर आरोप है कि उन्होंने दर्शनार्थियों को रोक कर एक उच्च अधिकारी की पूजा कराने से मना कर दिया था। इससे प्रशासनिक अधिकारी उनसे नाराज हो गये। इसके बाद उन पर अवैध नियुक्ति और अनियमितता के आरोप लगाये गये। उन्हें हटाने के लिए यह तर्क दिया गया कि 24 जून 2018 के बाद उनकी सेवा का विस्तार नहीं किया गया था और वे 60 वर्ष से अधिक हैं इसलिए वह मानदेय पर पूजन नहीं कर सकते। दोनों पक्षों को सुनने और पत्रावलियों के अवलोकन के बाद हाईकोर्ट ने न्यास के दोनों तर्कों को अस्वीकार कर दिया।

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अदालत ने कहा कि 60 साल बाद पूजा पर रोक का कोई नियम नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आचार्य की तुलना मंदिर के कर्मचारियों से नहीं की जा सकती। क्योंकि आचार्य कोई पद नहीं बल्कि एक परंपरागत दायित्व है। कोर्ट ने आचार्य के खिलाफ दिए गए आदेश को पूर्वाग्रह ग्रसित मानते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहाकि आचार्य का पूरा सम्मान किया जाय और वह चाहें तो अपने लिए एक सहायक भी रख सकते हैं। आचार्य हफ्ते में तीन दिन सोमवार, बुधवार और गुरुवार को रात्रि भोग, शृंगार, आरती व पूजन कर सकते हैं। गौरतलब है कि मंदिर में दर्शनार्थियों से दुर्व्यवहार, मोटी रकम लेकर सुविधाजनक दर्शन कराने के नाम पर अनियमितता के आरोप लगते रहते हैं। अधिकारियों और कर्मचारियों में खींचतान चलती रहती है। 

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