पुलिस कमिश्नरेट वाले जिलों में गैंग चार्ट मंजूरी की प्रक्रिया में DM को नही किया जा रहा शामिल-हाईकोर्ट
पुलिस कमिश्नरेट पर हाई कोर्ट की टिप्पणी-चुनिंदा जांच और अभियोजन कानून के शासन के विपरीत
प्रभावशाली और संगठित अपराध से जुड़े लोग जमानत की शर्तों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एवं असामाजिक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (गैंगस्टर एक्ट) के तहत जांच और अभियोजन की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाया है। कहा कि चुनिंदा तरीके से की जाने वाली जांच और चुनिंदा अभियोजन, कानून के शासन के विपरीत है। इससे शासन व्यवस्था पर जनता का भरोसा कमजोर होता है। अदालत ने कहा कि प्रभावशाली और संगठित अपराध से जुड़े लोग जमानत की शर्तों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं और अदालतों में बार-बार स्थगन लिया जाता है। जबकि अभियोजन तंत्र उन्हें प्रभावी ढंग से चुनौती देने में विफल रहता है।



न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने ये टिप्पणियां गाजियाबाद के नंदग्राम थाने में राजेंद्र त्यागी वो दो अन्य के खिलाफ दर्ज गैंगस्टर एक्ट की प्राथमिकी रद्द करने मांग में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं। याची का कहना था कि गैंगस्टर एक्ट के आवश्यक प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। डीएम और एसएसपी की संयुक्त बैठक में अधिनियम के अनुसार आवश्यक संतोष दर्ज किए बिना ही कार्रवाई की गई है। सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि जिन जिलों में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू है, वहां गैंग चार्ट को मंजूरी देने की प्रक्रिया में जिलाधिकारी को शामिल नहीं किया जा रहा है। जिन जिलों में कमिश्नरेट व्यवस्था नहीं है, वहां गैंग चार्ट को मंजूरी देने के लिए जिलाधिकारी और सीनियर पुलिस अधीक्षक की संयुक्त बैठक होती है। कोर्ट ने इसे उत्तर प्रदेश गैंगस्टर नियम, 2021 के नियम 5 (3) (ए) का उल्लंघन बताया, जिसमें स्पष्ट रूप से गैंग चार्ट की स्वीकृति के लिए जिलाधिकारी और एसएसपी या पुलिस आयुक्त की संयुक्त बैठक अनिवार्य की गई है।

कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक राज्य की बुनियाद इस सिद्धांत पर टिकी होती है कि हर नागरिक कानून के समक्ष समान है। राज्य की नजर में समान रूप से महत्वपूर्ण है। प्रशासकों को यह समझना चाहिए कि उनके निर्णय न्याय व्यवस्था की दिशा तय करते हैं। इतिहास न केवल उन निर्णयों को दर्ज करता है बल्कि उन्हें दोहराता भी है। कोर्ट ने गृह विभाग को आगाह करते हुए कहा कि चयनात्मक जांच और अभियोजन कानून के राज के विपरीत हैं। इससे शासन में जनता का विश्वास धीरे-धीरे खत्म होता है।

कोर्ट ने राज्य से इस बात पर स्पष्टीकरण मांगा कि यूपी गैंगस्टर्स नियम, 2021 के नियम 5(3)(एं) के आदेश के बावजूद डीएम को क्यों शामिल नहीं किया जा रहा था, जिसमें गैंग चार्ट को मंज़ूरी देने के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और सीनियर सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (एसएसपी)/पुलिस कमिश्नर के बीच एक जॉइंट मीटिंग अनिवार्य है। अदालत ने कहाकि असल में एक लोकतांत्रिक राज्य की अवधारणा इस बात पर आधारित है कि हर नागरिक न केवल कानून के सामने बराबर है, बल्कि उसे कानून की सुरक्षा का भी उतना ही हक है और एक कल्याणकारी राज्य की नज़र में वह उतना ही महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहाकि राज्य ने ऐसे गैंगस्टरों के खिलाफ मामलों के तेज़ी से निपटारे, गवाहों को पेश करने, गवाह सुरक्षा योजनाओं को ठीक से लागू करने, कोर्ट में अभियोजन पक्ष के गवाहों को समय पर पेश करने या जिला सरकारी वकीलों को कोर्ट को सार्थक सहायता देने के लिए संवेदनशील बनाने के लिए कोई नीति नहीं बनाई है। इसके अलावा राज्य सरकार का पुलिस पर जवाबदेही तय करने के लिए पुराने ज़माने की विभागीय जांचों को छोड़कर कोई कार्यक्रम नहीं है, जो अक्सर इंस्पेक्टर और उससे नीचे के रैंक के अधिकारियों के खिलाफ शुरू की जाती हैं।
