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वो दिलचस्प किस्सा जब महामना के गुरु को कहना पड़ा, हम का महात्मा हई, असली महात्मा त ई मालवीय बा….

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वो दिलचस्प किस्सा जब महामना के गुरु को कहना पड़ा, हम का महात्मा हई, असली महात्मा त ई मालवीय बा….
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वाराणसी। सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के संस्थापक भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की आज 25 दिसंबर को 163वीं जयंती (163th birth anniversary of Malviya) मनाई जा रही है। महामना का जीवन कई लोगों के लिए आदर्श रहा है, आज भी लोग उन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मानते है। क्या आप जानते है इतने महान शख्सियत किसे अपना गुरु मानते थे। आज हम आपको मालवीय जी और उनके गुरु से जुड़े एक रोचक किस्से के बारे में बताएंगे, जिन्हें जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे।

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जब BHU के छात्रों ने किया महामना के गुरु के साथ दुर्व्यवहार

एक बार बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज (बेनको) (आज का IIT-BHU) के छात्रों ने गंगा घाट के पास बाबा से दुर्व्यवहार कर दिया, वे जूते पहनकर उनके बजड़े पर जा चढ़े और उपद्रव मचाने लगे। मल्लाहों ने उन्हें डाटा, जिसके बात बढ़ गई। बाबा ने कहा, बजड़ा खोल दो, मैं अब यहां नहीं रहूंगा। आदेशानुसार बजड़ा खोल दिया गया और अस्सी घाट आते ही कहा बजड़ा यहां रोक दो। यह समाचार पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। नाराज बाबा ने छात्रों को बाबा बनारसी अंदाज में खूब बुरा-भला कहा।

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वो दिलचस्प किस्सा जब महामना के गुरु को कहना पड़ा, हम का महात्मा हई, असली महात्मा त ई मालवीय बा….

मालवीय ने गुरु से मांगी माफी

इसके बाद यह बात मालवीय जी तक पहुंची, उन्हें पता चला कि इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने उनके साथ कुछ बुरा बर्ताव किया, तो वह अस्सी घाट पहुंचे। उन्होंने छात्रों के दुर्व्यवहार पर बेहद अफसोस जताते हुए बाबा से माफी मांगी। उन्होंने उनके सामने छात्रों को फटकार बाबा के पैर पड़ने को मजबूर किया। बाबा नॉन स्टॉप बुरा भला कहते रहे। बनारसी अंदाज में गुरु ने कही ये बात घंटों बाद भी जब बाबा का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो मालवीय जी ने अपनी पगड़ी उतारी और बाबा के चरणों में रख दी। फिर, छात्रों को लेकर वहां से विश्वविद्यालय आ गए। मालवीय जी के जाने के बाद जब बाबा का गुस्सा शांत हुआ तो उनके मुंह से बनारसी अंदाज में निकल पड़ा कि 'हम का महात्मा हई, असली महात्मा त ई मलवईया बा'

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बता दें कि हरिहर बाबा को ही मालवीय जी अपना गुरु मानते थे। बाबा के बारे में कहा जाता है कि उन्हें हनुमान जी ने दर्शन दिए थे। उन्हें आर्शीवाद मिला कि बनारस जाकर बाबा विश्वनाथ के भक्त बन जाओ। उसके बाद हरिहर बाबा बंगाल से काशी आ गए। यहां पर उन्होंने आजीवन गंगा के पानी में रहने का फैसला किया। वह शौच गंगा पार करते थे, बाकी पूरा समय वह नाव पर ही व्यतीत करते थे।

हरिहर बाबा का आश्रम अस्सी पर ही बनाया गया है। आश्रम की महंत दीपा मिश्रा हैं। यहां पर उनका परिवार अस्सी संगमेश्वर मंदिर के पीछे हरिहर बाबा के आश्रम और मंदिर में आए भक्तों की सेवा करता है। काशीवासी शिव के रूप में उनकी पूजा करते थे।

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