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वाराणसी : विश्वप्रसिद्ध नाटी इमली का भरत मिलाप संपन्न, राम और भरत के मिलन पर इंद्र की भी हाजिरी 

श्रद्धालुओं को नहीं डिगा सकी भारी वर्षा, राजा बनारस भी पहुंचे 

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Nati Imali
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वाराणसी,भदैनी मिरर।  सात वार नौ त्योहार वाली काशी अपनी परम्परा को लेकर कितनी सजग है यह दृश्य शुक्रवार को नाटी इमली के भरत मिलाप पर देखने को मिली। सुबह से ही गरजना के साथ हो रही तेज वर्षा के बाद भी भरत मिलाप में शामिल होने काशीवासियों का हुजूम उमड़ पड़ा। इतना ही नही काशीवासियों के साथ ही विदेशी मेहमान भी उत्साहित दिखे। दशहरा के ठीक अगले दिन चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित होने वाली नाटी इमली का विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप देखने के लिए शुक्रवार को श्रद्धालुओं का हुजूम हाथ में छाता लिए भरत मिलाप मैदान में उमड़ी थी।

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नयनभिराम झांकी देख भाव-विभोर हुए भक्त

काशी के नाटी इमली भरत मिलाप मैदान पर शुक्रवार को तेज वर्षा के बाद भी भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। लंका से रावण का वध कर माता सीता और भाई लक्ष्मण और हनुमान के साथ पुष्पक विमान पर सवार हो भगवान् राम भरत मिलाप मैदान नाटी इमली पहुंचे। यहां कुछ ही देर बाद अयोध्या से भरत और शत्रुघ्न भी पहुंचे और मिलाप के चबूतरे पर आसीन हो गए। कुछ ही छण बाद नेमियों ने रामचरित मानस की चौपाइयां पढ़नी शुरू की। मौसम ख़राब होने से इस बार सूर्य की किरण तो नहीं पद सकी लेकिन समयानुसार 4 बजकर 40 मिनट पर भगवान श्रीराम और लक्ष्मण रथ से उतरकर भरत और शत्रुघ्न की तरफ दौड़ पड़े और उन्हे उठाकर गले लगाया । 3 मिनट की इस लीला को देखते ही पूरा मैदान हर हर महादेव और सियावर रामचंद्र की जय के जयघोष से गूंज उठा। इसी के साथ इस वर्ष 482वां भरत मिलाप संपन्न हुआ। 

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मेघा भगत ने शुरू की थी लीला

चित्रकूट रामलीला समिति के अध्यक्ष और भरत मिलाप के व्यवस्थापक ने बताया कि मेघा भगत भगवान श्रीराम को स्वप्न में आकर दर्शन दिए थे और यहां भरत मिलाप कराने का निर्देश दिया। मान्यता है कि यहां भगवान श्रीराम स्वयं उपस्थित होते हैं।

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यादव बंधुओं ने निभाई परंपरा

इस दौरान मेघा भगत द्वारा स्थापित इस लीला में यादव बंधुओं ने परंपरा का निर्वहन किया और भगवान का पुष्पक विमान भरत मिलाप स्थल से अयोध्या तक पहुंचाया। उनका गणवेश देखते ही बनता था।

काशी राज परिवार की भागीदारी

पिछले 228 वर्षों से काशी राज परिवार भी इस परंपरा का साक्षी बनता रहा है। पहले काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने 1796 में इस लीला में भाग लिया था और तब से पांच पीढ़ियों से यह परंपरा निभाई जा रही है। नाटी इमली का भरत मिलाप न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि काशी की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी जीवित रखता है। इस वर्ष मौसम ख़राब होने के बाद भी यह परम्परा नहीं टूटी। काशिराज परिवार के डॉक्टर अनंत नारायण सिंह इस बार हाथी से नहीं बल्कि चार पहिया वाहन से पहुंचे। 

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