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मोक्ष के तट पर सजी अनूठी महफ़िल : राग-वैराग की चौखट पर नुपुरों की झनकार, नगरवधुओं ने अर्पित की नृत्यांजलि

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वाराणसी, भदैनी मिरर। एक तरफ जलती चिताएं तो दूसरी तरफ भक्ति और पारंपरिक गीतों पर नृत्य। यह दृश्य शुक्रवार को मणिकर्णिका घाट पर बाबा महाश्मशान नाथ के शृंगार उत्सव के अंतिम दिन दिखा। संध्या पूजन के बाद राग-विराग का मेला घुंघरुओं की झनकार से शुरू हुआ जो देर रात तक चलता रहा। नगरवधुओं ने बाबा महाश्मशान नाथ के दरबार में नृत्यांजलि अर्पित कर अगले जन्म में ऐसा जीवन न देने की गुहार लगाई। 

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सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि पर भावविभोर हो नृत्यांजलि प्रस्तुत करती नगर वधुओं से महाश्मशान संगीतमय रहा। हालांकि मणिकर्णिका घाट पर सुंदरीकरण का कार्य जारी होने से इस बार मंच के लिए पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाया। रात्रि में नृत्यांजलि की परंपरा से पूर्व मध्याह्न और सायं भोग आरती में बाबा का विशेष पूजन किया गया। 
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शाम को बाबा का तांत्रिक विधि से पंचमकार पूजन किया गया। मंदिर को रुद्राक्ष से भी सजाया गया। इससे पूर्व मध्याह्न भोग के दौरान बाबा को सात्विक पकवानों का भोग लगाया गया। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया गया। कार्यक्रम का संयोजन चैनू प्रसाद गुप्ता, गुलशन कपूर, बिहारी लाल गुप्ता, संजय गुप्ता, विजय शंकर पांडेय, मनोज शर्मा, दीपक तिवारी, गजानन पांडेय, अजय गुप्ता आदि पदाधिकारी ने किया।
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BNS
ऐसे हुई थी परंपरा की शुरुआत
करीब साढ़े तीन सौ साल पहले राजा मानसिंह ने प्राचीन नगरी काशी में बाबा मसाननाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस मौके पर वह सांस्कृतिक कार्यक्रम कराना चाहते थे लेकिन काशी का कोई कलाकार तैयार नहीं हुआ। तब नगरवधुओं के आग्रह पर राजा मानसिंह ने उन्हें आमंत्रित किया। तब से मणिकर्णिका घाट पर इस उत्सव की शुरूआत हुई। माना जाता है कि इस दौरान नगरवधुएं नारकीय जीवन के उद्धार के लिए गुहार लगाती हैं।
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