स्वर्वेद महामंदिर में एक लाख दीपों की रौशनी से रोशन हुआ धाम, भक्ति और योग का मिला अद्भुत संगम
सांस्कृतिक कार्यक्रम और भजनों के बीच संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी और आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज ने दी दिव्य वाणी। स्वर्वेद और विहंगम योग के महत्व पर जोर, लाखों श्रद्धालुओं ने लिया भाग।

वाराणसी। संध्या पांच बजे स्वर्वेद महामंदिर धाम पूरी तरह दीपों की रौशनी में डूब गया, जब एक लाख दीपों की दैदीप्यमान पंक्तियाँ प्रज्ज्वलित की गईं। पूरे परिसर में मानो दिव्यता का सागर बहने लगा, जिसमें गौसेवा, गुरुकुल संरक्षण और राष्ट्र–प्रहरियों के सम्मान का संदेश साफ झलक रहा था। इस अवसर ने संस्कृति, करुणा और कर्तव्य-निष्ठा की भावना को और भी उजागर किया।



भक्ति और संस्कृति का संगम
सायंकालीन सत्र में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में भजनों की मधुर धुन, लोकनृत्य की सहजता और कत्थक की गरिमा ने वातावरण में भक्ति-रस भर दिया। उपस्थित श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर कार्यक्रम का आनंद लेते नजर आए।
कार्यक्रम में संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने जय स्वर्वेद कथा के माध्यम से लाखों लोगों के हृदय में विनम्रता और आत्मिक सौम्यता का संचार किया। महाराज ने कहा कि स्वर्वेद आध्यात्मिक ज्ञान का चेतन प्रकाश है, जो अविद्या, अंधकार और मिथ्याज्ञान को नष्ट करता है। यह ज्ञान हमारी आध्यात्मिक यात्रा को सदैव जागृत रखता है।

आचार्य स्वतंत्र देव जी महाराज का संदेश
अंत में सद्गुरु आचार्य स्वतंत्र देव जी महाराज ने विहंगम योग और आत्मज्ञान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज योग केवल आसन और प्राणायाम तक सीमित हो गया है, जबकि इसका मूल उद्देश्य आत्मज्ञान और परमात्मा की साधना है। उन्होंने बताया कि विहंगम योग एक संपूर्ण योग है, जिसके माध्यम से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास संभव है।

श्रद्धालुओं की भागीदारी और उत्साह
लाखों श्रद्धालु इस अवसर पर मौजूद रहे और उन्होंने दीपों की रौशनी और गुरु वचनों से आस्था और भक्ति का अनुभव साझा किया। कार्यक्रम ने न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ाई, बल्कि वाराणसी की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को भी और मजबूत किया।
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