
श्रीसंकटमोचन संगीत समारोहः हनुमत दरबार में जीवंत हुए तुलसी के श्रीरामचरित मानस के प्रसंग
भरतनाट्यम से हुई इस अंतरराष्ट्रीय समारोह की दूसरी निशा की शुरुआत




एतिहासिक मंच पर दिखी उच्चकोटि के कलाकार और श्रोता के रिश्तों की गहराई
वाराणसी। संकट मोचन संगीत समारोह की दूसरी निशा का गुरूवार को शुभारंभ भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति से हुआ। गायन, वादन और नृत्य की श्रृंखला में चेन्नई की लावण्या शंकर के भरतनाट्यम नृत्य की भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
उन्होंने भगवान शिव की आराधना ‘मल्लारी’ से शुरूआत की। ‘नाम रामायण’ के शीर्षक से दी गई नृत्यमय प्रस्तुति से उन्होंने संत तुलसी के श्रीराम चरित मानस के विभिन्न प्रसंगों को जीवंत किया। अपने नृत्य का समापन उन्होंने विशेष रचना ‘काशी पधारीं गंगा’ नृत्य से किया। नृत्य के माध्यम से उन्होंने माता गंगा के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।

‘का करूं सजनी आए न बालम’
दूसरी प्रस्तुति ने तो समारोह को और भी जीवंत बना दिया। कोलकाता के पं. अजय चक्रवर्ती ने राग यमन की अवतारणा की। भक्तशिरोमिण हनुमान को प्रसन्न करने के लिए ‘जग में कछु काम नर नारियन के नाहीं’ में राग यमन के स्वभाव की अनुभति कराई। श्रोताओं को विभोर कर देने वाली इस बंदिश के बाद उन्होंने सादरा का गायन भी पूरे भाव के साथ किया। ‘चंद्रमा ललाट पर सोहे भुजंग गर’ से गायन की खूबियां श्रोताओं तक पहुंचाई। ताराना सुना कर वह विराम लेना चाहते थे लेकिन श्रोताओं की मांग पर उन्होंने ठुमरी ‘का करूं सजनी आए न बालम’ की आनंदकारी प्रस्तुति दी। इस ठुमरी के लिए श्रोताओं की ओर से मांग, उसके तरीके और उच्चकोटि के कलाकार द्वारा उनकी बात रख लेने से कलाकार और श्रोता के रिश्ते की गहराई देखने को मिली।


रागों की क्लिष्टता को बड़ी ही सरलता से पेश कर दिया
तीसरे कलाकार के रूप में बीएचयू मंच व संगीत कला संकाय के डॉक्टर राजेश शाह ने सितार वादन कर संगीत निशा में चार चांद लगा दिया। जयपुर के सेनिया घराने के कलाकार के रूप में प्रसिद्ध राजेश शाह ने सितार पर राग झिंझोटी में आलाप जोड़ व झाला में अपनी सशक्त प्रस्तुति दी। इस राग में विलम्बित व द्रुत गतें त्रिताल में निबद्ध थीं। घराने की विशेषतानुसार वादन में आलापचारी में क्रमशः बढ़त काफी प्रशंसनीय रही। उन्होंने घराने की विशेषता के कारण ही रागों की क्लिष्टता को बड़ी ही सरलता के साथ श्रोताओं में संप्रेषित किया। रजनीश तिवारी ने तबले पर अनूठा संगत किया। इसी तरह समारोह की अगली प्रस्तुतियों का दौर जारी रहा।

इससे पहले संकटमोचन संगीत समारोह की पहली निशा में बुधवार की देर रात पांचवां कार्यक्रम हैदराबाद के पद्मभूषण डॉ. येल्ला वेंकटेश्वर राव के नाम रहा। आपको बता दें कि इससे पहले के कलाकारों की प्रस्तुति से सम्बंधित खबर उपर लिंक में है, जिसमें खुद संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने पद्मविभूषण पं. हरिप्रसाद चौरसियां के साथ पखावज पर संगत की थी।
उसी की अगली कड़ी में डॉ. येल्ला वेंकटेश्वर राव ने पखावज वादन से श्रोताओं को आनंदित कर दिया। पहली निशा की पांचवीं प्रस्तुति को लेकर मंचासीन हुए पखावज के जादूगर पद्मभूषण डॉ. येल्ला वेंकटेश्वर राव ने अपने सधे हुए वादन से श्रोताओं को एक बार पुनः अपना मुरीद बना लिया। उन्होंने आदि ताल में पखावज वादन की विविधता के दर्शन कराए। उनके साथ बोल पढ़ंत और सितार की संगति ने पखावज वादन को और भी प्रभावी बना दिया।
प्रवीण गोड़खिंडी ने अपनी ही बनाई बांसुरी से साधा सुर
बंगलुरु के प्रवीण गोड़खिंडी की छठीं प्रस्तुति रही। उन्होंने बांसुरी की स्वर लहरियों से श्रोताओं को रससिक्त किया। अपने पिता वेंकटेश्वर गोड़खिंडी की स्मृति में बनाए गए राग वेंकटेश कौंस का सधा हुआ वादन किया। इस राग के वादन के दौरान उन्होंने लयकारी का प्रभावी प्रदर्शन किया। अंत में उन्होंने नौ मात्रा का अंतरा बजाया। जिस बांसुरी पर यह अंतरा बजाया गया उसका निर्माण खासतौर से प्रवीण गोड़खिंडी ने कराया है जो पंचम सुर तक जा सकती है। उनके साथ तबला पर संगत कोलकाता के युवा कलाकार ईषान घोष ने किया।
पं. विकास महाराज के सरोद से निकली राग भैरवी
समारोह की पहली निशा और सातवीं प्रस्तुति में तीन कलाकार मंचासीन हुए। काशी के पं. विकास महाराज का सरोद वादन सुन श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये। उन्होंने राग चारुकेसी में वादन का आरंभ किया। इस राग में आलाप के दौरान उन्होंने आरोही-अवरोही स्वरों को बड़ी ही कुशलता से निभाया। इसके उपरांत उन्होंने अपनी कंपोजीशन ‘गंगा’ का वादन किया। इस कंपोजीशन के माध्यम से उन्होंने मां गंगा की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी। इसके बाद राग भैरवी में वादन करते हुए अपने कार्यक्रम को अपनी ही एक और कंपोजीशन ‘हृदय’ से समाप्त किया। उनके साथ सितार पर विभाष महाराज एवं तबला पर प्रभाष महाराज ने यादगार संगत की थी।

