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श्री संकटमोचन संगीत समारोहः हनुमत दरबार में ठुमरी ने बनाया होली का माहौल

कथक नृत्यांगना बी. अनुराधा सिंह ने शिव वंदन के बाद सुनाया घुंघरूओं की पांच आवाज का अंदाज

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प्रो. साहित्य कुमार नाहर की युगलबंदी ने आलाप, जोड़, झाला से सितार की शैली के कराये दर्शन

वाराणसीभदैनी मिरर। श्री संकटमोचन संगीत समारोह के अमृत महोत्सव में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त और सर्वोच्च सम्मान से विभूषित कलाकार पूरे मनोयोग से शास्त्रीय संगीत की अतल गहराईयों में गोते लगा और सुधि श्रोताओं को लगवा रहे हैं। शास्त्रीय संगीत के साधकों के उंगलियों खूबी यह है कि वह कठिन से कठिन और बारीक से बारीक सुल, लय और ताल को बड़ी आसानी से श्रोताओं तक पहुंचा दे रहे हैं। शास्त्रीय संगीत के इस अद्भुत संगम की चौथी निशा की प्रथम प्रस्तुति राजगढ़ घराने की वरिष्ठ कथक नृत्यांगना बी. अनुराधा सिंह ने दी। उन्होंने अपने नृत्य की शुरुआत भगवान शिव की वंदना से की। शूलताल में पांच मात्रा में निबद्ध रचना पर भगवान शिव का वंदन करने के बाद घुंघरुओं की पांच आवाज का अंदाज दिखाया। उन्होंने श्रीकृष्ण और राधा के बीच छेड़छाड़ और कालिया मर्दन के प्रसंग को भी प्रदर्शित किया। आमद, टुकड़ा, तिहाई, परन, चक्करदार परन, फरमाईशी परन आदि की सधी हुई प्रस्तुति से उन्होंने दर्शकों को आनंदित किया। राग कलावती में निबद्ध ठुमरी में उन्होंने होली का माहौल उत्पन्न किया। शुद्ध कथक के अंतर्गत लयकारी का बेहतरीन प्रदर्शन किया। 
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प्रो. नाहर ने की राग वाचस्पति की अवतारणा
दूसरी प्रस्तुति में सितारवादक प्रो. साहित्य कुमार नाहर वयलिन के साथ जुगलबंदी के लिए मंच पर आए। उनके साथ वायलिन पर संगत संतोष कुमार नाहर, तबला पर पं. रामकुमार मिश्र और पं. राजकुमार नाहर ने प्रभावी संगत की। प्रो. नाहर ने राग वाचस्पति की अवतारणा की। आलाप, जोड़ आलाप के बाद झाला के वादन से सितार की शैली विशेष के दर्शन कराए। विलंबित और द्रुत गत बजाने के बाद उन्होंने राग मिश्र खमाज में निबद्ध पारंपरिक धुन से अपनी प्रस्तुति का समापन किया।
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इससे पहले शुक्रवार की समारोह की तीसरी निशा की पहली प्रस्तुति अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ड्रमर पद्मश्री शिवमणि और उनके हमजोली यृ. राजेश और पखावज पर संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र संगत की खबर ऊपर कल के लिंक में है। 
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सगे भाइयों के कथक ने जीवंत किया कलाकार-श्रोता का रिश्ता 
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इस यादगार प्रस्तुति के बाद तीसरी निशा की दूसरी प्रस्तुति बनारस घराने के सौरव-गौरव मिश्र ने दी। काशी के इन युवा कलाकारों ने अपनी बेहतरीन प्रस्तुति देकर दीर्घा में मौजूद देश-विदेश के दर्शकों से प्रशंसा बटोरी। मिश्र बंधुओं ने पारंपरिक कथक के अंतर्गत बनारस घराने की बानगी तीन ताल में पेश किया। आदम, टुकड़ा, तोड़ा, तिहाई, परन, चक्करदार परन आदि की बेहतरीन प्रस्तुति दी। इसके बाद दोनों भाईयों ने पं. जसराज के प्रिय भजन ‘हनुमान लला मेरे प्यारे लला’ पर भावपूर्ण नृत्य किया। फिर ‘डिमिक-डिमिक डमरू कर बाजे, प्रेम मगन नाचे भोला’ पर भावनृत्य करते समय दर्शकों के साथ बेहतरीन तारतम्य का प्रदर्शन भी किया। दीर्घा में बैठे लोगों की तालियों की ताल पर भी दोनों भाईयों ने नृत्य किया। इस दौरान कलाकार और श्रोताओं के बीच का रिश्ता काफी घना और जीवंत हो गया था। 
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पिता-पुत्र की मोहन वीणा- सात्विक वीणा से गुंजायमान हुआ हनुमत दरबार
राष्ट्रीय गौरव कहे जाने वाले ‘ग्रैमी अवार्ड विजेता’ पद्मभूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट और ’तंत्री सम्राट’ की विलक्षण उपाधि से सम्मानित सात्विक वीणा वादक पंडित सलिल भट्ट के मोहन वीणा-सात्विक वीणा जुगलबंदी तीसरे क्रम में हुई। उन्होंने संकट मोचन हनुमान मंदिर के अमृत महोत्सव (75 वें वर्ष) को ध्यान में रखते हुए विशेष प्रस्तुति दी। पिता-पुत्र की जोड़ी की प्रस्तुति शानदार रही। उन्होंने पूरे विस्तार के साथ आलाप, जोड़, झाला, दोनों वीणाओं के सम्वाद से श्रोताओं को चमत्कृत किया। इस दौरान विलंबित, द्रुत गति की रचनाओं को प्रस्तुत कर राग जोग को परिभाषित किया। फिर इसी राग से शिव-हनुमान जी की स्तुति की। तीव्र गति से बजी तानों और असंख्य तिहाईयों के वादन से मंदिर प्रांगण गुंजायमान हो गया। अहमदाबाद से आए बनारस घराने के तबला वादक पं. हिमांशु महंत ने भी प्रभावकारी संगत की।

बंगलुरु के ओंकार हवलदार की सधी गायकी- ‘हम संग खेलो नंदलाल’ 

तीसरी निशा की चौथी प्रस्तुति में बंगलुरु के ओंकार हवलदार ने संकटमोचन दरबार में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने राग आभोगी कान्हाड़ा में प्रभावी गायन किया। ओंकार ने अपनी गायिकी में राग के स्वरूप के साथ पूरा न्याय किया। सुरों का सधा प्रयोग उनकी गायिकी का विशेष हिस्सा रहा। ओंकार ने विलंबित लय में ‘दरस देख दीजो’ के बाद द्रुत लय में आदि ताल में ‘हम संग खेलो नंदलाल’ का गायन किया। इसी राग में तराना की सुमधुर प्रस्तुति से उन्होंने अपने घराने के गुरुओं की विधा के दर्शन कराए। अंत में उन्होंने राग गोरख कल्याण में ‘महावीर हनुमान मनोजव’ के भावपूर्ण गायन से श्रोताओं से बहुत प्रशंसा बटोरी।
भजन ‘हनुमान लला तुम प्यारे लला' के जरिए गहराइयों में गईं दीपिका वरदराजन
तीसरी निशा की पांचवीं प्रस्तुति में चेन्नई से पधारीं सुश्री दीपिका वरदराजन ने अपने गायन से समां बांध दिया। जितनी सुरिली कंठस्वर, उतनी ही सुरीली प्रस्तुति। इन्होंने राग बागेश्री में तीन बंदिशें क्रमशः एक ताल, तीन ताल व द्रुत एक ताल में गाकर प्रथम अध्याय को विराम दिया। इसके बाद भजन ‘हनुमान लला तुम प्यारे लला‘ से गायन को विराम दिया। यह भजन श्रोताओं के भक्तिभाव को और गहराई में ले गया। इनके साथ श्रुतिशील उद्धव ने तबले पर और मोहित साहनी ने संवादिनी पर लाजवाब सहभागिता की। 
संतूर पर राग विभाष की अवतारणा ने अलग रस का संचार किया
 
अगली प्रस्तुति में विख्यात संतूर वादक पं. अभय रुस्तम सोपोरी ने संतूर पर राग विभाष की अवतारणा कर एक अलग रस का संचार कर दिया। आलाप में भी गंभीर स्वर, गतकारी में तमाम लयकारियां, जो सोपोरी बाज की विशेषता है, सुनाई पड़ी। उनकी प्रस्तुति को श्रोताओं ने तहेदिल से स्वीकार किया। इनके साथ तबले पर विख्यात तबला वादक पं. संजू सहाय ने युगलबंदी की। 
नटभैरव में ख्याल की बेहतीन प्रस्तुति
इसके पश्चात गया से पधारे राजेंद्र सेजवार ने गायन प्रस्तुत किया। इन्होंने राग नटभैरव में ख्याल गायन की बेहतरीर प्रस्तुति दी। इसके बाद एक ठुमरी से प्रस्तुति को विराम दिया। इनके साथ पं. कुबेरनाथ मिश्र ने तबले पर, संवादिनी पर पं. धर्मनाथ मिश्र व सारंगी पर संदीप मिश्र ने साथ दिया। 
यादगार रहा पं. हरीश तिवारी का गायन
अंत में दिल्ली से पधारे पं. हरीश तिवारी ने राग भटियार में ख्याल गायकी के पश्चात भजन से गायन को विराम दिया। इनका गायन यादगार रहा। इनके साथ तबले पर पं. मिथिवलेश झा ने, पं. विनय मिश्र ने संवादिनी पर साथ दिया।
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