
बांके बिहारी मंदिर अधिग्रहण पर शंकराचार्य का विरोध, बोले गोरखनाथ मंदिर का अधिग्रहण हो तो कैसा लगेगा?
ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने उठाए सवाल, कहा – "धर्मस्थानों पर धर्मनिरपेक्ष सरकार का अधिग्रहण अनुचित"




वाराणसी, भदैनी मिरर। वृंदावन के ऐतिहासिक बांके बिहारी मंदिर के प्रस्तावित सरकारी अधिग्रहण को लेकर देशभर में धार्मिक हलकों में चिंता बढ़ती जा रही है। काशी में इन दिनों मनुस्मृति पर प्रवचन दे रहे ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने इस पर कड़ा प्रतिकार जताया है। उन्होंने इसे धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा धार्मिक परंपराओं में अनावश्यक हस्तक्षेप बताया है।


शंकराचार्य जी ने एक वीडियो संदेश के माध्यम से कहा, “हमें यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि पूरे देश में जहां सनातन धर्म के अनुयायी सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि मन्दिरों को सरकारी अधिग्रहण से मुक्त किया जाए, वहीं वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर का अधिग्रहण शांतिपूर्वक हो रहा है और कोई प्रतिरोध नहीं दिख रहा है।”


उन्होंने स्पष्ट किया कि “यदि किसी मंदिर में कोई प्रशासनिक त्रुटि या अव्यवस्था हो, तो उसे सुधारा जाना चाहिए, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सरकार स्वयं मन्दिर की धार्मिक व्यवस्था को अपने हाथ में ले ले। इससे धर्म का स्वरूप ही खतरे में पड़ जाएगा।”
स्वामी जी ने विगत घटनाओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि “1982 में काशी विश्वनाथ मंदिर की चोरी के बहाने से सरकार ने मंदिर को अधिग्रहित कर लिया था, जबकि वह चोरी कभी सिद्ध ही नहीं हुई। लेकिन आज तक सरकार उस मंदिर का नियंत्रण नहीं छोड़ रही है।”

शंकराचार्य जी ने यह भी कहा, “यदि बांके बिहारी मंदिर को ट्रस्ट बनाकर सेवायतों और पुजारियों को हटा दिया जाता है, तो यही प्रक्रिया गोरखनाथ मंदिर पर क्यों न लागू हो? यदि वह अधिग्रहित हो जाए, तो क्या योगी आदित्यनाथ जी को यह उचित लगेगा?” उन्होंने यह भी जोड़ा कि, “जब हिन्दुस्तान धर्मनिरपेक्ष है, तब कम से कम धर्मस्थानों को तो धार्मिक ही रहने दीजिए, उन्हें धर्मनिरपेक्ष बनाने की चेष्टा अनुचित है।”
स्वामी जी ने वृंदावन के धर्माचार्यों से अपील की कि वे बांके बिहारी मंदिर की धार्मिक परंपरा की रक्षा करें और किसी भी कीमत पर सरकार को अधिग्रहण न करने दें।

