Premanand Maharaj Pravachan: क्या पैर छूने से पुण्य घटता है? प्रेमानंद महाराज ने तर्क सहित समझाया
वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने प्रवचन के दौरान दिया तर्क -कहा, पैर छूना सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है, लेकिन अहंकार आने पर घट जाता है पुण्य।

वृंदावन। सनातन धर्म में बड़ों का पैर छूना हमेशा से संस्कार और सम्मान से जोड़ा गया है। यही परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। इस विषय पर लोगों के अलग-अलग मत हैं - कोई इसे संस्कार मानता है तो कोई कहता है कि ऐसा करने से “पुण्य घट जाता है”। इसी विषय पर हाल ही में वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन में लोगों की इस जिज्ञासा का समाधान दिया।



प्रवचन के दौरान पूछे गए प्रश्न पर बोले महाराज
प्रवचन के दौरान एक श्रोता ने प्रश्न किया - “क्या किसी के पैर छूने से हमारा पुण्य घट जाता है?” इस पर प्रेमानंद महाराज ने मुस्कुराते हुए कहा — “अगर हमारी पैर छुआने की इच्छा है, तो भजन नष्ट होगा। लेकिन अगर हमारी कोई इच्छा नहीं है और सामने वाला श्रद्धा से पैर छूता है, तो पुण्य कभी नष्ट नहीं होता।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि पैर छूना और प्रणाम करना एक ही बात है- यह भावना और श्रद्धा पर निर्भर करता है, न कि कर्म के बाहरी स्वरूप पर।
प्रेमानंद महाराज ने दिया गूढ़ तर्क
महाराज ने आगे कहा, “लाखों लोग प्रणाम करते हैं, लेकिन हम उनमें अपने भगवान को देखते हैं। अगर हमारे मन में यह भाव है कि ‘मैं श्रेष्ठ हूं’, तो वही भाव हमारे पुण्य को घटा देता है। अगर हम भगवान को हर व्यक्ति में देखें, तो पुण्य नष्ट नहीं होगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि कोशिश करनी चाहिए कि कोई हमारे पैर न छुए, लेकिन अगर कोई श्रद्धा से ऐसा करता है तो भगवत भावना के साथ उसे भी प्रणाम कर लेना चाहिए।

भक्ति में भावना का महत्व
प्रेमानंद महाराज का यह प्रवचन इस बात पर बल देता है कि धार्मिक आचरण में कर्म से अधिक महत्वपूर्ण भावना होती है। पैर छूना अहंकार या प्रदर्शन नहीं, बल्कि विनम्रता और श्रद्धा का प्रतीक होना चाहिए।


